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________________ हिन्दी-बाल--शिक्षा सागरदत्त के माता पिता कोशिश करके थक गये, परन्तु जब पता न लगा सके, तो यह सोच कर कि किसी पापी ने गहनों के लोभ से उसे मार डाला होगा, शान्त हो रहे। उन्हें अपने प्यारे बेटे की मृत्युसे कितना दुःख हुआ ? इसका अनुमान वे ही कर सकते हैं, जिन्हें कभी ऐसा दृष्ट दैवी प्रसंग आया हो / आखिर वेचारे मन मसोस कर रह गये और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करने लगे। __ कुछ दिन बीते। एक दिन बालक सोमक समुद्रदत्त के घर के आंगन में खेल रहा था। समुद्रदत्ता के दिल में न जाने क्या बुद्धि उत्पन्न हुई,कि उसने सोमक को प्यार से पुचकार कर अपने पास बुलाया और बोली- भैया! बता तो सही तेरा साथी मागरदत्त कहां हैं? तु न उसे देखा है ? सोमक बालक था और बाल-स्वभावके अनुसार स्वच्छ हृदय वाला भी था। उसने झटपट कह दिया-वह तो मेरे घर में एक गड्ढे में गड़ा है। बेचारी समुद्रदत्ता अपने बच्चे की दुर्दशा सुनते ही धड़ाम से धरती पर गिरपड़ी / इतने में समुद्रदत्त भी वहाँ आ पहुँचा। उसने होश में लाकर , मूर्छित होने का कारण पूछा।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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