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________________ दिखाई दिया। उसकी चोंच में आधी रोटी थी / रोटी देखकर लोमड़ी ने सोचा - ऐसा कोई उपाय करना चाहिए, जिससे यह रोटी मुझे मिल जावे। यह सोचकर वह कौए के निकट गई , और बोली -- महाराज ! जयजिनेन्द्र / आप कुशल तो हैं ? कल मैं ने आपका गाना सुना था / वह बहुत ही मनोहर था। आप अच्छे गवैया हैं / कृपा करके एक गीत आज भी सुनाइए। ___ कौदा अपनी प्रशंसा सुनकर फूला न समाया। रोटी का ख्याल छोड़ चटपट गाने लगा। कौवा गाना क्या जाने, काय-काद-काव करने लगा। ज्यों ही उसने अपना मुंह खोला, त्यो हीरोटी नीचे आ गिरी। लोमड़ी ने उसे उठा लिया और बोली- महाराज! धन्य हो। आपने गाना भी सुनाया और खाना भी दिया। कौवा लोमड़ी की तरफ देखने लगा, लोमड़ी रोटी लेकर चलती बनी / .... यालको! आपली झूठी- सांची प्रशंसा सुनकर कुप्पा न हो जाया करो। बहुत से ठग ऐसा करते हैं। अगर कौवा ने इस शिक्षा का पालन किया होता, तो उसकी रोटी न जाती।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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