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________________ शिक्षा [29] 249 समाजसेवा और धर्मसेवा उत्तम है, परन्तु आत्मसेवा सर्वोत्तम है। क्योंकि जो संसार के समस्त प्राणियों को प्रात्मवत् गिने, परधन पत्थर समान गिने, परस्त्री को माता के स मान गिने, वही आत्मसेवा कर सकता है। 250 प्रशंसा की इच्छा न करो, पर जिससे प्रशंसा हो, ऐसे कार्य करो, कीर्ति सत्कार्य के साथ ही रहती है। 251 यदि तुम्हें बड़ा बनना है, तो पहले छोटे बनो। - गहरी (नीची-उंडी) नींव डाले विना बड़ामकान नहीं चिना जा सकता। 252 बड़प्पन की माप उमर या श्रीमंताई से नहीं, किन्तु बुद्धि से या उदारता से होती है / अत: .. चतुर और उदार बनो। 253 तलवार की कीमत म्यान से नहीं बल्कि धार से होती है, उसी तरह मनुष्य की कीमत धन से नहीं किंतु सदाचार से होती है। 254 वैर का बदला लेना क्षुद्रता है, जब कि क्षमा करना बड़प्पन का काम है / वृक्ष पत्थर मारने वाले को भी फल देता है।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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