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________________ शिक्षा [19] तत्त्वों की शिक्षा देनी चाहिए। 175 धर्माचरण करते समय "मैं मृत्यु के मुख में हूँ, आयु का विश्वास क्षण भर भी नहीं है" ऐसा सोचना चाहिए। 176 सर्वस्व नाश होता हो, तो भी अपने वचन (सत्य वचन) का अवश्य पालन करो / 177 ज्ञान और ज्ञानवान की भक्ति, जहां तक हो सके भरसक करो 178 रूप क्रोध और मद में अन्धा न हो जाना चाहिए। 176 भांग तमाखू और अफीम आदि नशैली चीज़ों का सेवन मत करो। 18. गृहस्थों के बारह व्रतों को यथाशक्ति पालन करो। 181 नीति मार्ग में चल कर सच्चा यश लेना चाहिए। 182 साधर्मी को यदि दोष लग गया हो, तो उसे एका. न्त में समझावें और उस साधर्मी को भी चाहिए कि जैसा दोष लगा हो वैसा ही प्रायश्चित लेवे / 183 चर्चा करते समय विवाद न करना चाहिए। 184 भगवान के कहे हुए मार्ग में खेंचतान न करनी चाहिए।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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