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________________ (102) सठियाजैनग्रन्थमाला - नीतिमणि-माला 1 नीतिशास्त्र. धर्म अर्थ काम का कारण और मुक्ति का दाता है, इससे ही जनता का उपकार और मर्यादा का पालन होता है। 2 इस संसार में सुख दुःख का कारण केवल कर्म है। कर्म जीव के साथ छाया की भांति रहता है-- अर्थात् कर्म क्षण भर भी जीव का संग नहीं छोड़ता है। 3 जो मनुष्य आत्मधर्म छोड़ देता है, औरों को सताता है, जीवों को हिंसा करता है तथा जो निर्दयी और अविचारी होता है, वही 'म्लेच्छ” कहलाता है। 4 मनुष्य के पहले जन्म के जैसे कर्म होते हैं, उसकी बुद्धि . भी उन कर्मों के फल भोगने के लिये वैसी ही हो जाती है / मनुष्य अपनी बुद्धि के अनुसार ही कर्म करता है यानी बुद्धि के विपरीत कर्म नहीं करता। 5 पहले जन्म के बुरे या भले जैसे कर्मों का उदय होता है, वैसीही बुद्धि हो जाती है और जैसी होनहार होती है, वैसे ही मददगार मिल जाते हैं। 6 संसार का स्वाभाविक नियम है कि, कमजोर को जबरदस्त दबा लेता है। पुरुषार्थ कमजोर है और कर्म जबरदस्त है, यह बात विना फल मिले मालूम नहीं हो सकती। यदि किसी कार्य के सिद्ध करने के लिये प्रयत्न किया जाय और वह काम सिद्ध हो जाय, तो कहा जायगा कि 'पुरुषार्थ' प्रबल है / अगर किसी कार्य में सफलता
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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