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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
* बहुत-से अलङ्कारों के स्वरूप ऊपर से परस्पर अभिन्न जान पड़ते हैं; पर उनके स्वरूप का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उनका पारस्परिक भेद स्पष्ट हो जाता है। आचार्यों ने अलङ्कार-विशेष की परिभाषा में ही उससे मिलते-जुलते स्वरूप वाले अलङ्कार से उसके व्यावर्तक धर्म का उल्लेख कर दिया है। अलङ्कारों के पारस्परिक भेद के सम्बन्ध में किसी आचार्य की मान्यता का परीक्षण करने के समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि उस आचार्य के द्वारा स्वीकृत अलङ्कारों के स्वरूप में ही पारस्परिक भेद का विचार किया जाना चाहिए। मम्मट, या रुय्यक-सम्मत समासोक्ति और अप्रस्तुतप्रशंसा की तुलना करने पर तो दोनों का भेद स्पष्ट हो जायगा; पर उनकी अप्रस्तुतप्रशंसा से रुद्रट की समासोक्ति के भेद-निरूपण का आयास व्यर्थ होगा। एक अलङ्कार से बहुत सूक्ष्म भेद के आधार पर दूसरे स्वतन्त्र अलङ्कार की कल्पना आचार्यों ने कर ली है। अतः, उनके स्वरूप को ठीकठीक समझने के लिए उनके पारस्परिक भेद का अध्ययन आवश्यक है।
___* मनोभाव के साथ अलङ्कार का सीधा सम्बन्ध नहीं। वे परम्परया भाव से सम्बद्ध हैं। उनका सीधा सम्बन्ध शब्द और अर्थ से है। वे शब्द और अर्थ को अलङ्कत कर भाव के पोषण में भी सहायक हो सकते हैं। कभीकभी तो वे इसके विपरीत भाव के बाधक भी बन जाते हैं।
कुछ ऐसे भी अलङ्कार स्वीकृत हुए हैं, जिनका मनोभाव से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। विषादन, प्रहर्षण आदि तत्तद् मनोभावों से सम्बद्ध हैं, पर उनका अलङ्कारत्व इन मनोभावों को जगाने वाली विशेष स्थिति के वर्णन के ढंग में है।
कुछ आचार्यों ने भाव-विशेष के साथ अलङ्कार-विशेष का नियत सम्बन्ध जोड़ने का भी प्रयास किया है; पर ऐसा प्रयास सर्वथा दुराग्रहपूर्ण ही सिद्ध हुआ है । प्रहर्षण, विषादन आदि को छोड़ प्रत्येक अलङ्कार की योजना सभी भावों के सन्दर्भ में की जाती रही है। एक ही अलङ्कार परस्पर विरोधी भावों का भी पोषण करता है। उपमा शृङ्गार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक बीभत्स, अद्भ त आदि सभी रसों का उपकार कर सकती है, फिर उसे किस रस या मनोभाव के साथ सम्बद्ध किया जायगा ? एक ही उपमान अलग-अलग सन्दर्भ में दो विरोधी भावों का प्रभाव जगा सकता है। किसी स्त्री की काली लट को नागिन के समान कहने से उसके सौन्दर्य का प्रभाव बढता है; पर स्त्री को नागिन के समान कहने पर उसकी भीषणता का प्रभाव बढता है। स्पष्ट