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अलङ्कार और मनोभाव
[८०३ को अन्वित करता है वहाँ एक वस्तु की सर्वातिशयता का निर्णय मन का 'विस्तार भी करता है।
रसवत, प्रय, ऊर्जस्वो, आदि-रसवदादि अलङ्कारों में रस भाव का गौण पड़ जाना और उक्ति-चमत्कार का प्राधान्य होना मन में चमत्कार उत्पन्न करता है। ___ अनुप्रास, यमक-ध्वनि-साम्य पर आधृत इन अलङ्कारों की ध्वनिगत सङ्गति मन को अन्विति प्रदान करती है । ___चित्र, प्रहेलिका-वर्ण, शब्द आदि का चातुर्यपूर्ण प्रयोग मन में चमत्कार की सृष्टि करता है।
तत्तदलङ्कारों की उक्तिभङ्गी से होने वाले अर्थबोध की इस प्रक्रिया पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अलङ्कार कहीं अर्थबोध में स्पष्टता लाकर मन को विकसित करते हैं, कहीं अलङ्कारों के अर्थग्रहण की प्रक्रिया में पाठक का मन एक अर्थ के साथ अन्य अर्थ के ग्रहण के लिए विस्तृत हो जाता है, कुछ अलङ्कार अपने अन्तविरोध अथवा असाधारणता के तत्त्व से पाठक को विस्मित कर देते हैं, कहीं अलङ्कार कौतूहल या जिज्ञासा जगा कर उसे शमित करते हैं, तो कहीं उक्तिभङ्गी में सङ्गति से पाठक के मन को अन्वित करते हैं। कुछ अलङ्कार जिज्ञासा या कौतूहल के साथ ही अन्विति भी प्रदान करते हैं। कुछ विस्मय उत्पन्न कर अन्वित करते हैं। अतः, एक अलङ्कार का एक ही भाव के साथ सम्बन्ध जोड़ना कठिन है। इस विवेचन के उपरान्त इस परम्परागत धारणा का मूल्याङ्कन किया जा सकता है कि रस, भाव आदि से निरपेक्ष अलङ्कार उक्तिवैचित्र्य के रूप में मन में चमत्कार की सृष्टि करते हैं। उक्ति की विलक्षण भङ्गी अलङ्कार का प्राण है। यह भङ्गी मन में विशेष प्रकार का चमत्कार उत्पन्न किया करती है। इसी में अलङ्कार की सार्थकता है। अलग-अलग उक्तिभङ्गियाँ जहाँ विस्मय, कौतूहल, अन्विति विस्तार, स्पष्टता आदि उत्पन्न करती हैं; वहाँ सब के मूल में विभिन्न रूपों में मन को चमत्कृत करना ही उद्देश्य रहता है। निष्कर्ष यह कि रस के साथ रहने पर अलङ्कार उनके उत्कर्ष में सहायक होते हैं; पर जहाँ रस न हो वहाँ भी अलङ्कार की विभिन्न उक्तिभङ्गियां पाठक के मन में विस्तार, विकास, अन्विति, कौतूहल, विस्मय आदि का चमत्कार उत्पन्न कर अपनी सार्थकता प्रमाणित करती हैं।