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________________ ५४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण का उपमेयत्व तथा उपमानत्व दोनों कहा जाता है । इसमें उपमेय स्वयं अपना उपमान बन जाता है, उपमेय से भिन्न उपमान की कल्पना नहीं की जाती । यह अलङ्कार उपमा से तत्त्वतः भिन्न नहीं है । दोनों में भेद केवल इतना है कि उपमा में उपमेय का उससे पृथक् सत्ता रखने वाले उपमान के साथ साधर्म्य - प्रतिपादन होता है तथा अनन्वय में उपमेय का उसी के साथ साधर्म्य वर्णित होता है । तात्विक भेद नहीं होने के कारण ही सम्भवतः भरत ने उपमा से अलग अनन्वय का उल्लेख नहीं किया है । 'नाट्यशास्त्र' में वर्णित उपमा के सदृशी भेद से अनन्वय का स्वरूप अभिन्न है । अभिनव ने सदृशी उपमा का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है कि इसमें उपमेय को ही उसका उपमान कल्पित किया जाता है । ' उत्प्रेक्षावयव श्लेष, रूपक तथा उत्प्रेक्षा अलङ्कारों के योग से भामह ने इस नवीन अलङ्कार की कल्पना कर ली है। उनके अनुसार उत्प्रेक्षावयव अलङ्कार में श्लिष्ट अर्थ का योग, कुछ उत्प्र ेक्षा का मिश्रण तथा रूपक अर्थ का समन्वय रहता है । एकत्र एकाधिक अलङ्कारों का सद्भाव सम्भव है । वे या तो परस्पर अङ्गाङ्गि-भाव से रह सकते हैं या एक दूसरे से निरपेक्ष रूप से रह सकते हैं । अतः अनेक अलङ्कारों को मिला कर एक नवीन अलङ्कार की कल्पना युक्तिसङ्गत नहीं । इसीलिए परवर्ती आचार्यों ने इस अलङ्कार की सत्ता स्वीकार नहीं की है । यदि एकाधिक अलङ्कार के सद्भाव में किसी नवीन अलङ्कार की कल्पना आवश्यक होती तो नानालङ्कार की संसृष्टि की कल्पना ही व्यर्थ हो जाती । भामह ने भी अनेक अलङ्कारों की संसृष्टि स्वीकार की है । अतः उत्प्रेक्षावयव की कल्पना अनावश्यक है । संसृष्टि सुन्दर रत्नों से रचित माला की तरह अनेक अलङ्कारों के संग्रथन से निर्मित संसृष्टि को भामह ने उत्तम अलङ्कार कहा है । यह स्वतन्त्र अलङ्कार १. यत्रोपमेयस्य एवोपमानता सेयं सदृशी । - नाट्यशास्त्र अभिनव भारती पृ० ३२४ ॥ २. श्लिष्टस्यार्थेन संयुक्तः किञ्चिदुत्प्रेक्षयान्वितः । रूपकार्थेन च पुनरुत्प्र ेक्षावयवो यथा ॥ - वही ३, ४७ ३. वरा विभूषा संसृष्टिर्बह्वलङ्कारयोगतः । रचिता रत्नमालेव सा चैवमुदिता यथा ॥ - वही, ३, ४६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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