________________
अलङ्कारों का पारस्परिक भेद
[६६१
उद्भट ने रूपक-लक्षण में गौणी वृत्ति (लक्षणा शक्ति) की चर्चा कर रूपक तथा उपमा के लक्षणा तथा अभिधा के आधार पर भेद-निरूपण की सम्भावना को जन्म दिया।' रूपक में दो भिन्न वस्तुओं-उपमेय तथा उपमान-का अभेद-प्रतिपादन लक्षणा शक्ति से सम्भव होता है। सादृश्यमूलक होने के कारण रूपक में गोणी लक्षणा रहती है । निष्कर्षतः, रूपक गौणी लक्षणा पर आधृत अलङ्कार है। उपमा में दो वस्तुओं के बीच साधर्म्य वाच्य रहता है। अतः, उपमा अभिधा शक्ति पर आश्रित अलङ्कार है। उपमा में साधर्म्य वाच्य तथा रूपक में व्यङ्गय होता है । ____ रुद्रट ने समासरूपक तथा समासोपमा का भेद इस आधार पर निरूपित किया है कि समासरूपक में उपमेय अप्रधान होता है; पर इसके विपरीत समासोपमा में उपमान अप्रधान होता है । २ 'मुख-चन्द्र' समास रूपक तथा समासोपमा, दोनों का उदाहरण हो सकता है । 'मुखं चन्द्र इव' ऐसा विग्रह होने पर उपमित समास होगा और वह उपमा का उदाहरण होगा; पर 'मुखं चन्द्र एव' विग्रह में रूपक अलङ्कार होगा। उक्त दो विग्रहों में समास के लिए व्याकरण-शास्त्र में पृथक्-पृथक् व्यवस्था है-(क) उपमितं व्याघ्रादिभिः सामान्याप्रयोगे तथा (ख) मयूरव्यंसकादयश्च । उपमित समास उपमा अलङ्कार का तथा मयूरव्यंसकादि समास रूपक का निर्णायक है । प्रयोग के अर्थ के आधार पर उपमा तथा रूपक का निर्णय किया जाता है । 'मुखचन्द्र प्रकाशित हो रहा है' ऐसे प्रयोग में प्रकाशित होना चन्द्रमा का धर्म होने से चन्द्रमा प्रधान होगा; अतः वहाँ रूपक माना जायगा। उस स्थल में विग्रह होगा'मुखं चन्द्र एव' । 'मुखचन्द्र का चुम्बन' ऐसे प्रयोग में मुख का ही चुम्बन सम्भव होने से मुख की प्रधानता होगी; अतः वहाँ उपमा अलङ्कार माना जायगा। वहाँ विग्रह होगा-'मुखं चन्द्र इव' । स्पष्ट है कि उपमान के प्रधान तथा उपमेय के उपसर्जन होने के स्थल में समास-रूपक तथा उपमेय के प्रधान और उपमान के उपसर्जन होने के स्थल में समासोपमा अलङ्कार माना जाता है। वामन ने 'मुखचन्द्र' आदि में सार्वत्रिक रूप से उपमा ही १. द्रष्टव्य-उद्भट, काव्यालङ्कार सारसंग्रह, १,२१ तथा उसकी विवृति
पृ० ७,८ २. समासोपमाया रूपकत्वनिवृत्यर्थमाह-उपसर्जनमप्रधानमुपमेयं यत्र । ......"समासोपमायां तूपमानमुपसर्जनम् ।
–रुद्रट, काव्यालङ्कार, पृ० २६२