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________________ ३८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण के अनुसार कवि अपने अभीष्ट कथन का निषेध-सा करता है। कवि जब अभिप्रेत कथन का आपाततः निषेध-सा करता हुआ प्रस्तुत करता है तो कथन की उस भङ्गी में वैशिष्ट्य आ जाता है ।' यही आक्षेप अलङ्कार कहा जाता है। इस अलङ्कार में इष्ट अर्थ के कथन की धारणा मनोरथ लक्षण से तथा निषेध की धारणा प्रतिषेध लक्षण से ली गई है। इस प्रकार उक्त दो लक्षणों से तत्त्व ग्रहण कर आक्षेप अलङ्कार की रूप-रचना हुई है। अर्थान्तरन्यास - भामह के अर्थान्तरन्यास अलङ्कार का मूल भी भरत के लक्षणों में ही है। शोभा तथा उदाहरण लक्षणों के मिश्रण से प्रस्तुत अलङ्कार का आविर्भाव हुआ है । अर्थान्तरन्यास में कथित अर्थ के समर्थन के लिए, उसके अनुगत अन्य अर्थ का उपन्यास होता है। २ शोभा लक्षण में सिद्ध अर्थ के द्वारा असिद्ध अर्थ की सिद्धि होती है। एक अर्थ से दूसरे अर्थ का साधन इसमें भी होता है, शर्त केवल यह है कि सिद्ध के द्वारा असिद्ध का ही साधन शोभा लक्षण कहा जाता है। अर्थान्तरन्यास में सिद्ध-असिद्ध का कोई नियम नहीं। उदाहरण लक्षण की दूसरी परिभाषा में यह कहा गया है कि जहाँ समान अर्थ से युक्त वाक्य के प्रदर्शन के द्वारा प्रस्तुत अर्थ का साधन होता है वहाँ उदाहरण लक्षण माना जाता है। स्पष्ट है कि शोभा तथा उदाहरण का स्वरूप भामह के अर्थान्तरन्यास से मिलता-जुलता है। भरत के इन लक्षणों के आधार पर ही परवर्ती आचार्य ने अर्थान्तरन्यास अलङ्कार के स्वरूप की कल्पना की होगी। १. प्रतिषेध इवेष्टस्य यो विशेषाभिधित्सया । आक्षेप इति तं सन्तः शंसन्ति द्विविधं यथा । -भामह, काव्यल०, २,६८ २. उपन्यसनमन्यस्य यदर्थस्योदितादृते । ज्ञेयः सोऽर्थान्तरन्यासः पूर्वार्थानुगतो यथा । वही, २, ७१ ३. सिद्ध रथैः समं कृत्वा ह्यसिद्धोऽर्थः प्रसाध्यते । -भरत, ना० शा० १६, ७ ४. यत्र तुल्यार्थयुक्तेन वाक्येनाभिप्रदर्शनात् । साध्यन्ते निपुणरास्तदुदाहरणं स्मृतम् ॥ -ना० शा० अ० भा० पृ० ३०४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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