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________________ अलङ्कारों का स्वरूप - विकास [ ५१५ जगन्नाथ आदि सभी आचार्यों ने एक वस्तु में अन्य वस्तु के भ्रमात्मक ज्ञान को भ्रान्तिमान् अलङ्कार माना है । शोभाकर ने भ्रमात्मक प्रतीतिमात्र के रमणीय वर्णन में अलङ्कारत्व माना है । उनकी मान्यता है कि केवल सादृश्य- समुत्थ भ्रमात्मक प्रतीति में अलङ्कारत्व मानना भ्रान्तिमान् के क्षेत्र को सीमित करना है ।' शोक, भय, उन्माद आदि से उत्पन्न भ्रम का वर्णन भी भ्रान्तिमान् अलङ्कार का विषय माना जाना चाहिए; पर यह सिद्धान्त रुय्यक, मम्मट आदि को मान्य नहीं था । शोभाकर को छोड़, प्रायः सभी आचार्यों ने सादृश्यमूलक भ्रान्ति में ही भ्रान्तिमान् अलङ्कार की सत्ता मानी है । कुछ आचार्यों ने भ्रान्ति का नाममात्र उसके लक्षण में कह दिया है। कुछ ने अलङ्कारत्व के लिए 'कवि प्रतिभा कल्पित' भ्रान्ति का होना आवश्यक माना है । अधिकांश आचार्य एक वस्तु में अन्य वस्तु के ( उपमेय में उपमान के ) सादृश्य के कारण निश्चयात्मक ज्ञान की सुन्दर कल्पना को भ्रान्तिमान् अलङ्कार मानते हैं । यही लक्षण अधिक ग्राह्य जान पड़ता है । कुछ आचार्यों ने इसे भ्रान्ति संज्ञा से अभिहित किया है । भ्रान्तिमान् के भेद जयरथ, जगन्नाथ आदि को साधारण धर्म के अनुगामितया बिम्बप्रतिबिम्बभावेन तथा वस्तुप्रतिवस्तुभावतया निर्देश के आधार पर इसके तीन भेद इष्ट हैं । भोज ने भ्रान्ति के अनेक भेदों की कल्पना की है । २ सन्देह स्मृति तथा भ्रान्ति की तरह सन्देह की धारणा का विकास भी दर्शन के ज्ञान-विवेचन में हुआ था । सन्देह या संशय किसी वस्तु में उस वस्तु के तथा उससे भिन्न वस्तु के अनिश्चयात्मक ज्ञान की स्थिति है । इसमें ज्ञान कोटिक तथा अनिश्चयात्मक रहता है । किसी वस्तु में उस वस्तु के साथ अन्य वस्तु का भी अनिश्चयात्मक ज्ञान प्रधानतः उन दो वस्तुओं के बीच सादृश्य के कारण ही होता है । अतः, सन्देह सादृश्यमूलक अलङ्कार माना गया है । सन्देह और संशय पर्यायवाची शब्द हैं । अलङ्कार के रूप में ससन्देह तथा ससंशय व्यपदेश का भी प्रयोग हुआ है । इन अभिधानों के मूल में यह धारणा १. द्रष्टव्य, शोभाकर, अलं० रत्नाकर, पृ० ५३ २. द्रष्टव्य, भोज, सरस्वतीकण्ठा० ३,३५-३८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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