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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
किया। अतः गौण आलङ्कारिकों की उपेक्षित सूची में उनका नाम डाल देना समीचीन नहीं। प्रस्तुत सन्दर्भ में हम 'अलङ्कार-रत्नाकर' के अलङ्कारों के स्रोत * पर विचार करेंगे।
'अलङ्कार-रत्नाकर' में शब्द एवं अर्थ के निम्नलिखित एक सौ नौ अलङ्कारों का स्वरूप-निरूपण किया गया है:शब्दालङ्कार
पुनरुक्तवदाभास, यमक, छेकानुप्रास, वृत्यनुप्रास, लाटानुप्रास और चित्र । अर्थालङ्कार
उपमा, कल्पितोपमा, अनन्वय, असम, उपमेयोपमा, उदाहरण, प्रतिमा, तुल्ययोगिता, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, निदर्शना, स्मृति, विनोद, व्यासङ्ग, • व्यतिरेक, प्रतीप, वैधर्म्य, रूपक, अभेद, परिणाम, अपह्नति, सन्देह, वितर्क,
उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान्, उल्लेख. प्रतिभा, क्रियातिपत्ति, अतिशयोक्ति, अप्रस्तुत'प्रशंसा, व्याजस्तुति, प्रत्यनीक, विनोक्ति, सहोक्ति, समासोक्ति, श्लेष, परिकर, पर्यायोक्त, निश्चय, आक्षेप, विध्याभास, सन्देहाभास, विकल्पाभास, विरोध, विभावना, विशेषोक्ति, असङ्गति, अन्योन्य, विपर्यय, अचिन्त्य, विषम, सम, विचित्र, विशेष, व्याघात, अशक्य, व्यत्यास, समता, उद्रेक, तुल्य, अनादर, आदर, अनुकृति, प्रत्यूह, प्रत्यादेश, समाधि, अर्थान्तरन्यास, व्याप्ति, अनुमान, हेतु, आपत्ति, अर्थापत्ति, विधि, नियम, प्रतिसंख्या, प्रतिप्रसव, तन्त्र, प्रसङ्ग, -विकल्प, समुच्चय, परिवृत्ति, पर्याय, क्रम, वर्धमानक, अवरोह, अतिशय, . शृङ्खला, तद्गुण, मीलित, विवेक, परभाग, उद्भेद, गूढ़, सूक्ष्म, व्याजोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक, उदात्त, रसवत्, प्रेय और ऊर्जस्वी।
शोभाकर ने संसृष्टि की सत्ता का विरोध किया है। और सङ्कर के सम्बन्ध में कुछ विलक्षण धारणा व्यक्त की है। उन्होंने पूर्वाचार्यों की तरह अनेक अलङ्कारों के अङ्गाङ्गित्व में सङ्कर अवश्य माना है; पर यह नवीन : धारणा व्यक्त की है कि जहाँ अङ्गाङ्गि-भाव से अनेक अलङ्कार होंगे वहाँ प्रधान को अलङ्कार और अप्रधान को उसका सङ्कर कहा जायगा ।२ स्पष्टतः,
१. न संसृष्टि: पूर्वहानाच्चारुत्वाभावाच्च ।-शोभाकर, अलं० रत्ना०,१११ २. 'अङ्गत्वे तु सङ्करः ।....."तेन प्रधानतायां उपमादीनां निजं निजं नाम अङ्गत्वे पुनरेषां सङ्करधी ङ्गिभावेऽपि ।
-वही, सूत्र ११२ तथा उसकी वृत्ति, पृ० १६८