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________________ ६६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण के द्वारा काव्यालङ्कार के रूप में स्वीकृत था; किन्तु उद्भट ने उसका नामोल्लेख भी नहीं किया है। भामह के उत्प्रेक्षावयव तथा उपमारूपक अलङ्कारों की पृथक् सत्ता का निषेध दण्डी ने ही कर दिया था। उद्भट दण्डी की इस मान्यता से सहमत जान पड़ते हैं। वस्तुतः उत्प्रेक्षावयव को उत्प्रेक्षा का तथा उपमारूपक को रूपक का भेद मानना ही समीचीन है। आचार्य दण्डी के द्वारा कल्पित आवृत्ति अलङ्कार को भी 'काव्यालङ्कार सार सङ ग्रह' में स्वीकृति नहीं मिली है। दण्डी की आवृत्ति-धारणा के परीक्षण-क्रम में हमने यह सिद्ध किया है कि दीपक अलङ्कार से पृथक् आवृत्ति की सत्ता की मान्यता तर्कपुष्ट नहीं है। हेतु, सूक्ष्म तथा लेश के अलङ्कारत्व का भामह ने खण्डन किया था। दण्डी ने उन्हें न केवल अलङ्कार के रूप में स्वीकृति दी, अपितु उन्हें वाणी के उत्तम आभूषण कहा। उद्भट ने हेतु, सूक्ष्म तथा लेश का विवेचन नहीं किया है। उद्भट के द्वारा यमक अलङ्कार का उल्लेख नहीं किये जाने का कारण अनुप्रास के साथ उसके स्वरूप का अतिशय साम्य ही जान पड़ता है। भामह ने अनुप्रास और यमक दोनों का पृथक्-पृथक् उल्लेख किया था, किन्तु दण्डी ने अलङ्कार के सन्दर्भ में केवल यमक के स्वरूप का विवेचन किया। उद्भट ने अनुप्रास अलङ्कार के स्वरूप का निरूपण किया है। सम्भव है कि अनुप्रास से पृथक् यमक का स्वरूप-विश्लेषण उन्होंने आवश्यक नहीं समझा हो। 'काव्यालङ्कारसारसङ ग्रह' में विवेचित काव्यालङ्कारों के पूर्वाचार्यों के अलङ्कारों से भेदाभेद की दृष्टि से निम्नलिखित वर्ग माने जा सकते है (क) सर्वथा नवीन अलङ्कार-इस वर्ग में पुनरुक्तवदाभास, काव्यलिङ्ग तथा दृष्टान्त अलङ्कार आते हैं। (ख) पूर्ववर्ती आलङ्कारिकों के अन्य नामधेय अलङ्कारों के आधार पर कल्पित नवीन अलङ्कार–सङ्कर और छेकानुप्रास इस वर्ग के अलङ्कार हैं। इन दो अलङ्कारों का नामोल्लेख सर्वप्रथम उद्भट की रचना में ही हुआ है ; किन्तु इनका स्वरूप अज्ञात-पूर्व नहीं था। सङ्कर के स्वरूप का सङ्कत दण्डी के सङ्कीर्ण अलङ्कार के अङ्गाङ्गिभाव भेद में स्पष्ट है । उद्भट के छेकानुप्रास-नामक नवीन अलङ्कार की उद्भावना का आधार भी पूर्ववर्ती आचार्यों की अनुप्रासधारणा. ही है। (ग) उद्भट के द्वारा लक्षित-लक्षण पूर्वाचार्यों के अपरिभाषित अलङ्कारलाटानुप्रास अलङ्कार इस वर्ग में माना जा सकता है। भामह ने लाटीय
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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