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________________ ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ સ્વામીએ, પંડિતો, તથા શાસ્ત્રીઓના મતે. છે. શા. સં. ૨. રા. સ્વામી વિશ્વેશ્વરાનંદજી તથા સ્વામી નિત્યાનંદજીને મત ओ३म् __शान्तकुटि, सिमला. ता० २७-१०-१० श्रीमत् रा० रा० शेठजी श्री ठाकोरदास जमनादासजी, बोबे. महोदय, आनन्दित रहो. आपका बना या हुआ “संस्कृत भाषा प्रदीप” नामक पाणिनीय व्याकरणका गुजराती भाषांतर हमारे देखने में आया. पाणिनीय व्याकरणका एसा उत्तम सुगम व सरल तथा कृदन्तातिरिक्त अखिल व्याकरणका पूर्ण बोधप्रद सर्वोपयोगी ग्रन्थ गुजराती भाषामें एकभी नही बना. हमकुं सन्यासधर्मानुसार निष्पक्षपाततया लिखना पडता है कि यदि कोइभी गुर्जर सम्राट् संस्कृतज्ञ होता तो महाराजा भोजके समान आपका बहुत सन्मान करता. हम सदन्तःकरणसें आपके इस महोपकार अगाध परिश्रम व विचित्र बुद्धि वैभव तथा लोकोपकारी व्यवसायके लिये कृतज्ञ हैं, जो कि आपने निःस्वार्थ बुद्रिसे गुर्जर प्रजाके लिये किया है. यदि आपके इस संस्कृत भाषा प्रदीपको पाणिनीय व्याकरणाब्धिका सुपोत वा सेतु कहा जायतो यत्किंचित् मात्र भी अत्युक्ति नहिं हे. अतः हम समस्त गुजराती विद्यारसिक वाचक वृन्दसे साग्रह निवेदन करते है कि इस संस्कृत भाषा प्रदीपको वे एकवार अवश्य हि पढें. हमकुं आशा है कि हमारे गुजरातीभाइ इस अपूर्व ग्रंथका अवलोकन करके लाभ उठाकर आपके परिश्रमको अवश्य हि सफल करेंगे. तथास्तु. शुभं भवतु. शमित्योम. हः स्वामी विश्वेश्वरानंदः ., नित्यानंदः છે. શા. સં. ર. રા. પંડિત નાગેશ્વરપત ધર્માધિકારી-વ્યાકરણાચાર્ય (તથા કાશીની રાજકીય પ્રધાન સંસ્કૃત પાઠશાલાના મુખ્ય ગુરૂ) ને મત. श्रीः स्वस्ति श्रीमद्विद्वदनुरागिश्रीठाकोरदासजमनादासश्रेष्ठिवरान् शुभाशीराशिभिः संवर्ध्य प्राप्तपुस्तकाभिप्रायो भाषया निरूपयति. आपका भेजा हुवा "संस्कृत भाषा प्रदीप" नामक ग्रन्थ मेने देखा. यह पाणिनीयव्याक रणावलम्बसें रचित ग्रन्थ अत्युत्तम है. ऐसा गुजराती भाषामें सरल संग्रहीत व्याकरण विषयक ग्रन्थ अभित्तक मेरे दृष्टि गोचर अन्य नहीं है. अत एव हं श्री काशीविश्वनाथसे यही प्रार्थना करते है की गुजराती भाषाभिज्ञ लोक विशेषतः गुर्जर वणिग् जन इसीका प्रथम शिक्षणमें उपयोगकर लघूपायसे संस्कृतज्ञ होकर यथाशक्ति स्वीय धर्म रक्षणक्षम होकर ग्रन्थकारके परिश्रमको सफल करें. इति शम्. २५-९-१० नागेश्वरपन्त धर्माधिकारी. प्रोफेसर, संस्कृत कॉलेज बनारस. વે. શા. સં. રે રે. શાસ્ત્રી બદરીનાથ વ્યંબકનાથ-વૈયાકરણ (નૈયાયિક તથા વડોદરાના રાજ્યના તર્કવાચસ્પતિના ખેતાબ તથા સેનાના ચાંદનું માન પામેલા) ને મત. श्रीः संमतिपत्रमिदम्. રા, રા, શેઠ ઠાકરદાસ જમનાદાસ પંજી, - આશીર્વાદ વિશેષ તમારે “સંસ્કૃત ભાષા પ્રદીપ” નામને ગ્રંથ આરંભથી પર્યવસાન
SR No.023460
Book TitleSanskrit Bhasha Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakordas Jamnadas Panji
PublisherThakordas Jamnadas Panji
Publication Year1867
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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