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________________ ૧૨૮ पुमांसौ चक्षुषम्। " पुंसः पुभिः पुंसा पुस पुंसः " चक्षुषाम् | पुंसोः चक्षषि पुमांसौ पुमांसः विद्वांसम् " " " -FRE दाभ्ये: " विदुषोः એકવચન | દ્વિવચન બહુવચન | એકવચન દ્વિવચન બહુવચન १३५ चक्षुस ( ५. सी.न.)-ना--३ः। । १३६. पुंस् (५.)=भास. पु. सी. न. पु.सी. न. ५. स्त्री. न. चक्षुः । चक्षुः | चक्षुषौ | चक्षुषी चक्षुषः | चक्षुषि | पुमान् पुमांसः पुमांसम् चक्षुषा | चक्षुाम् चक्षुभिः 'भ्याम् चक्षुषे चक्षुर्यः पुंभ्यः चक्षुषः पुंसाम् चक्षुःषु-चक्षुष्षु पुसि | पुन्सु (पुंसु न) चक्षुः । चक्षुः । चक्षुषो | चक्षुषी | चक्षुषः | चक्षुषि | पुमन् .)हाथ. | १३८. विद्वस् (५. न.) मालापु. न. ५. न. ५. न. न. पु. . न. ५. दोषौ । दोषी दोषः । दोषि | विद्वान् विद्वत् विद्वांसौ| विदुषी | विद्वांसः | विद्वांसि विदुषः , दोभ्याम् | दोर्भिः विदुषा विद्वद्भयाम् विद्वद्भिः विदुषे विदुषः दोषाम् विदुषाम् दोष्षु . विदुषि विद्वत्सु दाः दोः | दोषौ । दोषी । दोषः । दोषि | विद्वन् विद्वत् | विद्वांसौ | विदुषी | विद्वांसः| विद्वांसि १3८. पेचिवस् (५. न.) शंधता | १४०. रुरुद्वस (Y. न= २७तात! हुत ते-राधतुत त-२७० तु . . ५. न . न. ५. न. ५. न. ५. स्त्री. न. ५.स्वा. न. पेचिवान् पेचिवत् पेचिवांसौ | पेचुषी पेचिवांसः पेचिवांसि रुरुद्वान् | रुरुद्वत् | रुरुद्वांसौ रुरुदुषी | रुरुद्वांसः। रुरुद्वांसि , , पेचुषः । , रुरुद्वांसम् , " " रुरुदुषः " पेचुषा पेचिवद्भयाम् पेचिवद्भिः रुरुदुषा रुरुद्वद्भयाम् । रुरुद्वद्भिः । पेचिवद्भयः पेचुषः पेचुषोः पेचुषाम् रुरुदुषाम् पेचुषि रुरुदुषि पेचिवान् पेचिवत् पेचिवांसी | पेक्षुषी पेचिवांसः पेचिवांसि रुरुद्वन् । रुरुद्वत् | रुरुद्वांसौ | रुरुदुषी | रुरुद्वांसः। रुरुद्वांसि १४१. शुभ्रवस् (..न.) सांगता १४२. जग्मिवस् (पु. न.) हता ते-साल तुत. हतो ते- ते. . न. Y. न. ५. न. शुश्रुवान् शुश्रुवत् शुश्रुवांसौ शुश्रुवसी शुश्रुवांसः शुश्रुवांसि जग्मिवान् जग्मि- जम्मिवांसौ जग्मि- जग्मिवांसः जग्मि [वसी शुश्रुवांसम् शुश्रुवुषः , जग्मिवांसम् , " " जग्मुषः । शुश्रुवुषा शुभ्रवद्भयाम् शुश्रुवद्भिः जग्मुषा जग्मिवद्भयाम् जग्मिवद्भिः शुश्रुवुषे शुश्रुवद्भयः । जग्मुषे जग्मिवद्भयः जग्मुषः शुश्रुवुषोः शुश्रुवताम् जग्मुषोः जग्मुषाम् शुश्रुवुषि शुश्रुवत्सु जग्मुषि सी जग्मिवत्सुवासि शुश्रवान् शुश्रवत् शुधवांसौ शुभ्रवसी शुश्रवांसः शुश्रवांसि जग्मिवन् जग्मिवत् जग्मिवांसौ जग्मिव- जग्मिवांसः जग्मि पेचिवांसम् , पचुषे रुरुदुषे " पेचिवत्सु [वन् | [वांसि शुश्रुषुषः । "
SR No.023460
Book TitleSanskrit Bhasha Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakordas Jamnadas Panji
PublisherThakordas Jamnadas Panji
Publication Year1867
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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