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[ ३ ] का निधन-समय १७४३ ईस्वी है । अतः वृत्तमुक्तावली १७३२ और १७४३ ई. के बीच में किसी समय रची गई होगी जब कि ईश्वरविलास की रचना १७४३ या १७४४ ईस्वी में सवाई ईश्वरीसिंह के राज्यारोहण के उपरान्त प्रारंभ हुई। इसके अतिरिक्त वृत्तमुक्तावली में सवाई जयसिंह द्वारा हिन्दुओं को जजिया कर से मुक्त कराने का भी उल्लेख निम्न पद्य में प्राप्त होता है जो इतिहासज्ञों द्वारा समसामयिक साक्ष्य के रूप में ग्रहण किया जा सकता है
"जातोज्जागर 'जेजिया' भिधकरस्तोमात्तभूमीरसप्रस्फूर्जद्यवनेन्द्र भास्वति कलिग्रीष्मेऽतिभीष्मे नृणाम् । भाग्यर्यः प्रविराजतां प्रमुदितोऽजस्र सहस्र समाः
सद्यः स्वोदयसंहृताऽखिलविपत्पीयूषपाथोधरः ॥५"-व.मु. अतः प्रस्तुत रचना का साहित्यिक महत्त्व तो है ही, साथ ही इससे प्राप्त ऐतिहासिक सङ्केत भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं ।
रचयिता ने द्वितीय गुम्फ के अन्त में वृत्तमुक्तावली का अपर नाम 'छन्दोमुक्तावली' भी लिखा है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि श्रीकृष्ण भट्ट वृत्तमुक्तावली से पूर्व बूंदी के राव अनिरुद्ध सिंह के पुत्र राव बुद्धसिंह हाड़ा की प्रार्थना पर 'वृत्तचन्द्रिका' नामक अपर छन्दोग्रन्थ की रचना व्रजभाषा में कर चुके थे। राव बुद्धसिंह स्वयं एक काव्य-प्रेमी और कवि नरेश थे। इनका एक रीति-ग्रन्थ नेहतरंग भी प्रतिष्ठान से पिछले वर्षों में प्रकाशित किया जा चुका है।
हमें दुःख है कि श्री पी.के. गोड़े, जो कविकलानिधि-साहित्य के अन्वेषक एवं उद्घाटक थे और उनके ग्रन्थों के प्रकाशन में जिनका हमें पूर्ण सहयोग प्राप्त था, इस वृत्तमुक्तावली के प्रकाशन से पूर्व ही 'इह-वृत्त' से मुक्त हो गये। ____ यह भी एक मणिकाञ्चन योग है कि कविकलानिधिजी के ग्रंथों का सम्पादन कविशिरोमणि भट्टश्रीमथुरानाथजी शास्त्री, साहित्याचार्य द्वारा हुआ है जो ग्रंथकार के सीधे वंशज होने के अतिरिवत सम्प्रति संस्कृत-साहित्य-जगत् में रससिद्ध कविशिरोमणि एवं विश्रुत वयोवृद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हैं । यह
और भी सन्तोष और प्रसन्नताका विषय है कि श्रीभट्टजी के ज्येष्ठ चिरंजीव प्रो० कलानाथ शास्त्री, एम० ए०, साहित्याचार्य भी अपने पिताश्री के पद-चिह्नों पर सफलतापूर्वक अग्रसर हो रहे हैं । दोनों ही श्रीशास्त्रीजी और उदीयमान कलानाथजी ने क्रमशः अपने-अपने संस्कृत और अंग्रेजी-भाषा-निबद्ध वक्तव्यों में छन्दःशास्त्र, 'वृत्तमुक्तावली' को हस्तप्रति की उपलब्धि एवं ग्रंथकार के जीवन
और कर्तुत्व-विषयक तथ्यों पर सम्यक् प्रकाश डाला है जो साहित्य-मर्मग्राही विद्वानों एवं अनुसंधित्सु अध्येताओं के लिए परमोपयोगी है।