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________________ कठोर स्वभाव के दोष से अशिष्ट व्यवहार कर बैठे हैं वे लोग साधारण कामों में शिष्टाचारी होने का अभ्यास करते-करते अन्त में शिष्ट और सुशील हो सकते हैं। १०. जो स्वभाव के चञ्चल हैं, वे गंभीरभाव का अभ्यास करते गंभीर बन सकते हैं। उसी प्रकार जो गंभीर प्रकृति के मनुष्य हैं, वे वाचाल बन्धु - समाज में रह कर उन लोगों के मनः सन्तोषार्थ वाचालता का अनुकरण करते-करते स्वभावतः वाचाल हो सकते हैं। ११. चिरकाल तक अशिष्ट व्यवहार से हृदय की कोमलता के नष्ट हो जाने पर भी कोई इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकता कि अशिष्ट लोगों के संसर्ग की अपेक्षा शिष्टाचारी, विनयी सज्जन की संगति में विशेष सुख नहीं है । १२. अपने जीवन को सुखी बनाने के लिये अनेक उपाय हैं, उनमें शिष्ट व्यवहार भी यदि एक उपाय मान लिया जाय और इससे दूसरी कोई उपकारिता न समझी जाय तो भी सुजनता की शिक्षा नितान्त आवश्यक है। सामान्य सुजनता से भी कभी-कभी लोगों का विशेष उपकार हो जाता है। १३. कठोर बातें बोलना, दूसरों के अनिष्टसाधन में प्रवृत्त होना, निर्दयता का काम करना और अहङ्कार दिखलाना अशिष्टता है, इसमें कोई सन्देह नहीं । अयुक्त रीति से जो शिष्टता दिखलाई जाती है उसे भी लोग निंदनीय समझते हैं। १४. दृढ़प्रतिज्ञा, अध्यवसाय, आत्मवश्यता और उद्योगपरता से मनुष्य क्या नहीं कर सकता। जब तुम बराबर परिश्रम करते रहोगे तब जो काम तुम्हें आज असाध्य जान पड़ता है वह कल सुसाध्य जान पड़ेगा । १५. दूसरे की उन्नति देखकर हृदय में विद्वेषभाव का उदय होना अत्यन्त गर्हित है। जो उच्च हृदय के मनुष्य हैं उनके हृदय में ऐसा विद्वेष कभी उत्पन्न नहीं होता। वे गुण का ग्रहण करते हैं, दोषों का त्याग करते हैं और जिससे उन्हें कल्याण की आशा होती है उसका आदर करते हैं और जिससे अमंगल होने की संभावना होती है, उससे विरत रहते हैं, महान् पुरुषों का यही कर्तव्य है । १६. जो स्वार्थ की रक्षा करते हुए यथासाध्य दूसरे का उपकार करते हैं वे उन स्वार्थियों से अच्छे हैं जो दिन रात अपने ही श्री गुणानुरागकुलक १८७
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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