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________________ और मूर्खता ये दोनों बराबर हैं क्योंकि मूर्खता में निमग्न मनुष्य स्थूल पदार्थों को भी समझने में असमर्थ होता है, इसी तरह अन्धकारस्थित मनुष्य समीपवर्ती वस्तुओं को भी नहीं देख सकता । यहाँ तक कि अपने अवयवों को भी यथार्थरूप से नहीं देखता । इसी कारण से अन्धकार और मूर्खता ( अज्ञान) इन दोनों की परस्पर तुलना में प्रायः घनिष्ट संबंध मालूम पड़ता है जैसे भूत, प्रेत, यक्ष, राक्षस, सर्प आदि भयानक प्राणियों का प्रकाश में अल्प भय भी उत्पन्न नहीं होता, परन्तु अन्धकार में उनका देखना तो अलग रहा, किन्तु स्मरण भी महा भयङ्कर मालूम पड़ता है, इसी प्रकार अज्ञानियों को कषाय, मात्सर्य, असत् श्रद्धा, आदि पिशाचों का भय हमेशा बना रहता है; क्योंकि अज्ञानियों का चित्त सत् असत्, धर्म, अधर्म आदि पदार्थों के विचार में दिग्मूढ़ बना रहता है, और जगह-जगह अनेक कष्ट उठाने पर भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता। कास्तकार (किसान) लोग अज्ञान दशा से वित्तोपार्जन करने के लिए खेती-बाड़ी करके अनेक अनर्थ जन्य पापकर्म बाँधते हैं, रातदिन परिश्रम उठाया करते हैं, ग्रीष्मकाल का घाम और शीतकाल का शीत भी नहीं गिनते परन्तु सिवाय खर्च निकालने के दूसरा कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। और साहूकार लोग किंचित् भी परिश्रम न उठा कर गादीतकिया लगाकर दूकान पर बैठे-बैठे ही हजारों रुपये कमा लेते हैं, और उसको दान पुण्य, परोपकार आदि में व्यय कर मनुष्य जन्म को सफल करते हैं। इन दोनों में केवल ज्ञान और अज्ञान का ही भेद है, अज्ञानियों की जगह जगह पर दुर्दशा और उपहास तथा तिरस्कार होता है। इसलिए गुण और दुर्गण को पहचानने के निमित्त सद्ज्ञान प्राप्त करने की पूरी आवश्यकता है, क्योंकि ज्ञान के बिना साराऽसार की परीक्षा नहीं हो सकती । कर्त्तव्य क्या है ?, अकर्त्तव्य क्या है ?, सत्य क्या है ?, असत्य क्या है ?, जीव क्या है ?, कर्म क्या है ?, इत्यादि बातों का निर्णय, ज्ञान के बिना नहीं हो सकता, और स्वधर्म तथा परधर्म का स्वरूप भी मालूम नहीं हो सकता, अतः ज्ञानसंपादन अवश्य करना चाहिए। लिखा भी है कि— भवविटपिसमूलोन्मूलने जडिमतिमिरनाशे मत्तदन्ती, पद्मिनीप्राणनाथः । श्री गुणानुरागकुलक 909
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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