________________
श्री.
tatatatatet, trtet Natatatatatatatatatatatatatatatatatateretetatatatatatatat etatatatatatat tetrtatatatatatats
yeteretretetet.tatatattoostatute tatatatatatatatatatatatatetrtrtrtrtreters to
श्री गुरुचरण नमी करी, करजोडी ते वारोरे;. .. ' अनुमति जो मुजने दियो, तो करुं क्रिया उद्धारोरे. श्री काल प्रमाणे खप खरं, दोषी हलु कर्म दलेवारे . तप करूं आलस मूकीने, मानव भवतुं फल लेवारे.' श्री. गुणवंत गुरु इणि परे कहे, 'योग्य जाणीने सुविचारोरे; जिम सुख थाय तिम करो, निज सफल अवतारोरे.' धर्म मार्ग दीपाववा, पांगरीया मुनि एकाकीरे; विचरे भारंडनी परे, शुद्ध संयममुं दिल छाकीरे. सहे परिषह आकरा, शोषे निज कोमल कायारे, क्षमता समता आदरी, मेली सहु ममता मायारे. ___ एक दिवस श्री सत्यविजयजीए श्री विजयसिंहमूरिने कलु
के ' आपनी आज्ञा होय तो हुँ क्रियोद्धार करूं. द्रव्य, क्षेत्र काल * अने भाव प्रमाणे संयम पालं. ' आचार्य का के — जेम सुख थाय
तेम करो (जहा सुख्खं देवाणुप्पिया)' आधी सत्यविजयजीए धर्ममार्गनेदीपाववा भारंडपक्षीनी पेठेअप्रमत्तपणेएकाकीविहार कर्यो..
३ विहार. ई. मेवाडना उदेपुरमा चोमासु कयु. घणा लोकोने प्रतिबोध आपी
धर्ममा स्थिर कर्या. छ? छटना तप करवा लाग्या.त्यांथी मारवाडमा ३ आव्या. त्यां पण जैनधर्म घणाने पमाडयो. पछी मेडता गाममां के
ज्यां श्री आनंदघनजी पण ते प्रसंगे रहेता हता अने ज्यां हाल ते मनी देरी छे त्या आवी चोमासुं कयु. अहींथी विहार करता नागोर ओवी चोमा कर्यु, त्यांथी जोधपुर चोमासु कयु एम देश विदेश अमतिबंधपणे विहार करी लोकोपर परम उपकार कर्यो.
४.पन्यासपद सं. १७२९. श्री विजयसिंहमूरिना पट्टाधीश श्री विजयप्रभमूरिए पोताना हस्तथी सोजत गाममां सं. १७२९ मां सत्यविजयजीने पन्यास पद आपवामां आव्यु हतुं. अहींथी पोते सादडीचोमासुंकर्यापछी गुजरा
Jatat tutattottotoot.tttt.tutetntatutet-tak.tutetitetstatutatutatutitutetottotatutetatutetatuttitutetik