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________________ शीलोपदेशमाला. ( शार्दूलविक्रीडितम् ) जीवाजीव विचारवारिविचरत्पत्रावलीमंडितं, तत्त्वज्ञानमधुप्रमेडुरतमं शुद्ध क्रियाकेशरम् ॥ यावजैन मतांबुजं मुनिमरालोघैः समाश्रीयते, तावन्नंदतु वाच्यमानमृषिभिः शास्त्रं श्रियो मंदिरम् ॥ १३ ॥ अर्थ- जीव अने अजीवना विचाररूप पाणीमां विचरती एवी प त्रोनी पंक्तिथी सुशोजित, तत्वज्ञानरूप मकरंदथी अतिशय स्निग्ध अने शुद्ध क्रियारूप परागवालुं जैनमतरूप कमल ज्यांसुधी मुनिरूप इंसना समूहोथी सेवन कराय डे त्यांसुधी मुनिर्जए अभ्यास करेलुं श्रा लक्ष्मीना मंदिररूप शास्त्र आनंद पामो. ॥ १३ ॥ ४४६ ( उपजातिवृत्तम् ) राजीमतिं राज्यमतिं विहाय, विवादयस्तां दयितां दयाख्याम् ॥ जुजाबलापास्त विप्रपः श्रियेऽस्तु नेमिः शमकल्पवृक्षः ॥ १४ ॥ अर्थ- जेमणे राजीम तिने अने राज्यने त्यजी दइ दया नामनी स्त्रीनी साथे विवाद करेलो . वली जुजाना बलथी शत्रुना पहनो नाश करनारा ने शमताना कल्पवृक्ष एवा श्री नेमिनाथ लक्ष्मी ने अर्थ था. ॥१४॥ ॥ इति शीलोपदेशमाला प्रशस्ती समाप्ता ॥
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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