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मूलगाथान.
४११ 'वली स्त्रीए पोताना घरनुं आंगणुं त्यजीने न जq जोइए, कारण जवाथी अपवाद लागे . कयु डे के, जे स्त्री पोताना घर- श्रांगणुं त्यजी दश्ने बहार फरे , ते स्त्री सारा कुलमां उत्पन्न थयेली होय तो पण तेने पुराचारिणी जाणवी. अर्थात् उपर गाथामां कहेला गुणवाली स्त्री वखपाय ॥ १०३॥
वली स्त्रीउँना गुणोनेज वखाणे जे. देवगुरुपितृस्वसुरादिकेषु जक्ता स्थिरा वरविवेका देवगुरुपियरससुरा-इएसु नत्ता थिरी वरै विवेया॥
कांतानुरक्तचित्ता विरला महिला सुदृढचित्ता कंतारत्तचित्ता, विषैला महिला सुदिचित्ता ॥ १०४॥
शब्दार्थ- (देव के०) अरिहंतदेव (गुरु के०) सुसाधुगुरु ( पियर के०) माता पिता श्रने (ससुराश्एसु के०) सासु सासरा दिकने विषे (नत्ता के०) नक्तिवाली ( थिरा के०) स्थिर स्वनाववाली ( वरविवेया के०) सारा विवेकवाली ( कंताणुरत्तचित्ता के०) पतिने विषे प्रीतिवाली अने (सुदिढचित्ता के०) शीलनुं रक्षण करवामां दृढचित्तवाली एवी (महिला के०) स्त्री ( विरला के०) बहु थोडी होय . ॥ १०४ ॥
विशेषार्थ- अरिहंत देव, सुसाधु गुरु, मातापिता, अने सासुससरो वली दियर अने पतिना मित्र विगेरेने विषे नक्तिवाली, स्थिर खनाववाली, सारा विवेकवाली, पतिने विषेप्रीतिवाली अने पोताना शीलन रक्षण करवामां दृढ चित्तवाली एवी स्त्री था जगत्मां बहु थोडी . ॥
हवे महासतीऊना शीलवतनुं दृढपणुं कहे बे. निर्मलमहासतीनां सीलव्रतं खंडयितुं . न शक्रोऽपि निम्मलमहासईणं, सीलवयं खंडिनें न सकोवि॥
शक्तः येन तासां , जीवात् शीलं अन्यधिक संकेश जेण ताणं, जीवान सीलमनदियं ॥२०॥
शब्दार्थ-(निम्मलमहासईणं के०) पवित्र एवी महासतीऊना (सीलवयं के०) शीलवतने (खंडिज के०) खंडन करवाने ( सकोवि के०)
रो विशेषार्थ- श्राव ( विरवा के रक्षण करवामां