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________________ ४०५ मूलगाथान. शब्दार्थ- (रमणीणं के०) स्त्रीना (देहावयवाण के०) शरीरना हाथ, पग, मुख विगेरे अंगोनी (रमणीयं के०) मनोहर एवी (जं के०) जे (सिरि के) शोजाने (सरसि के०) संजारे बे; परंतु (अवणवीरमे के०) युवावस्था विराम पामे बते अर्थात् वृद्धावस्थामां (वेरग्गदारणिं के०) वैराग्य थापनारी (तं के०) ते शोजाने (सरेसु के०) सं. जारीने (चिय के०) विचार कर. ॥ एए॥ विशेषार्थ- हे प्राणी! तुं स्त्रीऊना शरीरना हाथ, पग, मुख विगेरे अंगोनी मनोहर एवी जे शोजाने संजारे , परंतु तेज शोजा वृक्षावस्थामां वैराग्य उत्पन्न करनारी तेनो विचार कर. वृद्धावस्थामां सू. काई गयेला पांदडावाली लतानी पेठे शीथल अंगवाली स्त्रीने जो सर्वे विराग पामे ; माटे ते वृद्धावस्थानी दशाने आ युवावस्थामां संजारीने शीलवतने पाल. ॥ एए॥ हवे शीलवंतनुं माहात्म्य श्रने शीलरहितनी निंदा कहे बे.. शीलपवित्रस्य . सदा किंकरलावं कुर्वति देवाःअपि शीलेपवित्तस्स सँया, किंकरनावं करंति देवावि॥ शीखनष्टः नष्टः परमेष्ठीअपि खलु यतः जणितं शीलनको नहो, परॅमिहीवि हुँ जैन भणियाए॥ शब्दार्थ- (देवावि के०) देवता पण (शीलपवित्तस्स के०) शीलव्रतथी पवित्र एवा पुरुषy (किंकरलावं के०) दासपणुं (सया के०) निरंतर (करंति के०) करे अने (शीलनहो के०) शीलवतश्री नष्ट थयेलो (परमिहीवि के०) ब्रह्मा पण (हु के०) निश्चे (नहो के०) नाश पाम्यो . (जर्ड के०) एज कारणमाटे (नणियं के) शास्त्रमा कडं . ॥ ए६॥ विशेषार्थ- देवता पण शीलवतथी पवित्र श्रयेला पुरुषy दासपणुं निरंतर करे बने शीलव्रतथी व्रष्ट थयेलो ब्रह्मापण लोकमां सर्व प्र. कारे वगोवायो जे. एज कारणमाटे शास्त्रमा पण कडं . ॥ ए६ ॥ शास्त्रमा जे कयु डे ते कहे जे. यदि स्थानी यदि मौनी यदि मुंडी वटकली तपस्वी वा जैश गणी जैश मोणी, जैश मुंडी वली तव॑स्सी वा ॥
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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