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________________ ३एन शीलोपदेशमाला. कराय . नेत्रोथी कोइ पण पदार्थने जोये बते द्वेष तथा रागादिक विकार उत्पन्न थाय बे; पण ते वेष तथा रागादिकने उत्पन्न करनार पुरुष प्रसिद्ध बता अदृश्य कहेवाय . रूपादिकनी पेठे सुखादिकने पण गुणपणुं निश्चय बे. अर्थात् रुपादिकना सरखं सुखादिकमां गुणपणुं रहेढुं बे; परंतु तेमां जो गुणी जोश्ये तो अदृश्य एवो श्रात्मा एकज . थामा प्रत्यद थये ते " हुं सुखी बु अथवा पुःखी बुं.” एवी संसार सं. बंधी वेदना वृथा देखाय . माटे हे जव्यजनो! तेवा मोहनो त्याग करो. सत्यवादनी युक्तिथी चंड सूर्यना उपराग (गृहण) विगेरेनो श्रनुमानथी अग्निनी पेठे विचार करवो. सर्वज्ञ पुरुष जाणपणाना अनुमानथी बीजापुरुषनी मनना झंडा वीचारोने जीतनी अंदर रहेली वस्तुनी पेठे निश्चय जाणी शके बे. वजन पुरुषोनां वाक्यथी अने अनुमानथी सर्वज्ञपणुं प्राप्त करीने तेए कहेला उत्तम मार्गनो मोद लदमीने माटे आश्रय करवो.” __ एवी केशी गणधरनी तत्व गर्जितवाणीथी शीथील थयो ने श्राग्रह जेनो एवो तथा संदेहथी दोलायमान थयुं चित्त जेनुं एवो ते प्रदेशी राजा तत्काल ते सजामां आव्यो. त्यां उधनी धाराना सरखी सूरीनी स्नेह ष्टिथी धोवाइ गयो मननो मेल जेनो एवा ते प्रदेशी राजाए मधुरवाणीथी सूरीने कडं. “ हे जगवन् ! म्हारो पिता बहु पाप करनारो होवाथी तमारा मत प्रमाणे नरकमां गएलो होवो जोश्ये अने म्हारी माता तमारा धर्मनी जाण होवाथी ते तमारा मत प्रमाणे स्वर्गमां गयेली होवी जोश्ये. वली हुँ जेवो तेने वहालो हतो तेवो बीजा कोइने नथी, जेथी म्हारां मात पिता पोतानां सुख कुःखनी वात मने केम कही जतां नथी?” सूरीए कह्यु. “पोताना कर्मरूप दोरीथी पशुनी पेठे बंधाएलो अने परखाधिन रहेलो प्राणी नरकमांथी पोतानी मरजी प्रमाणे अहिं श्रावी शकतो नथी. वली विषयमा आसक्त अने परस्पर गाढ प्रीतिवाला खर्गमां रदेला देवताउने पण था लोकमां श्राववानी घणी मरजी होय बे, परंतु ते रस्तो जाण्या विना शी रीते श्रावी शके ? था मृत्युलोकनी पुगंध चारसे ने पांच योजन सूधी जंचे जाय , जेथी देवता अहिं आवी शकता नथी, पण फक्त अरिहंतना
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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