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कमलानी कथा.
शए३ हवे रतिवद्धन राजा पोतानी प्रियाने बंधनमांधी बोमाववामाटे जेटलामां कीर्तिवर्डन राजानी साथे युक करवा जवासारु सैन्यनी तैयारी करे ने तेटलामां तेज महाबल नामना केवलज्ञानी मुनि विहार करता करता कीर्तिवर्डन राजाना गिरिवर्डन नगरने विषे गया. त्यां तेमना प्रजावधी कमलाने बांधेला सांकलना बंधो सिंञ्चार वृक्षना पुष्पनी पेठे तुरत तूटी गया. कीर्तिवन राजा परिवार सहित मुनिने वंदन करवा गयो. त्यां तेने मुनिए धर्मलाल थापीने विशेष प्रतिबोध करवामाटे तेना पूर्वजन्मना वृत्तांत सहित कमलानो प्रत्यद दृष्टांत कही संजलाग्यो भने कडं के, “श्रा शीलवृत्तरूप वृदनुं प्रत्यक्ष फल जुर्म के, जे प्रथम कमलाना शरीरे बांधेला सांकलनां बंधनो तूटी गया.” थावां मुनिनां वचन सांजली अत्यंत खेद पामेलो कीर्तिवर्धन राजा श्राश्चर्यथी विचार करवा लाग्यो के, “ हाय ! हाय ! बन्ने लोकमां विरुक एवं में श्रा शुंबाचमु !!! काममा आसक्त एवा में महासती एवी कमलाने विषे जे खोटुं चिंतव्यु हतुं,ते तेना शीलवृत्तथी निष्फल थयुं !" श्रावी रीते विचार करी ते त्यांथी उठी ज्यां कमलाने एकांत स्थानमा राखी हती त्यां श्रावीने तेना पगमां पडी पोताना करेला अपराधनी क्षमा मागीने कहेवा लाग्यो के, “ हे बहेन ! जेनुं मुख जोवा योग्य नथी एवो पापी, अने जगतमां निंदा करवा योग्य हुँ @ के, जे में तने श्रावं कष्ट श्राप्यु. वली तें प्रथम मने अकार्य करता वास्यो हतो; तेथी तुज म्हारो बंधु अने धर्माचार्य जे. हवे हुँ तने त्हारा नगरप्रत्ये पहोचाडीश. त्यां त्हारे रतिवन राजाए म्हारा उपर करेलो क्रोध दूर कराववो.” पड़ी महा मूल्यवाला रत्नोथी गामां नरी अने कमलाने साथे लश् कीर्तिवर्कन राजा त्यांथी चाली निकल्यो. अहिं सोपारपुरथी रतिवद्धन राजा पण म्होटी सेनाने साथे लश् जेटलामां सीमाडे श्राव्यो तेटलामां तेने कमलाए पत्र थापीने आगलथी मोकलेलो कासद सामो मल्यो. पड़ी तुरत क्रोध अने संतोषधी व्याप्त थयेलो रतिवद्धन राजा कमलाए लखेलो पत्र लश् वांचवा लाग्यो. ___ स्वस्तिश्री म्हारा हृदयमां निवास करी रहेला श्रीरतिवल्सन खामीने नमन करीने समुजना मध्यथी आपनी दासी कमला विनंती करे ने के,