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मल्लिनाथनी कथा.
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तार्जए वचलो सोनानो गढ कस्यो अने तेना उपर उत्तम रत्नोथी कांगरारच्या जवनपतिए त्रीजो रूपानो गढ रच्यो ने तेना उपर कमलना सरखा सोनाना कांगरा रच्या. जाणे धर्म लक्ष्मीना विवाहने अर्थे चार मांडवा बनाव्या होयनी ? एम अकेका गढ़मां चार चार दरवाजा राख्या तथा दरेक दरवाजा पासे धूप घटी ने कमलथी मनोहर वाव्यं बनावी. मध्यमां समवसरणनुं म्होढुं मनोहर चैत्यवृक्ष व्यंतर देवताए बनाव्यं. तेनी नींचे रत्नजमीत पीठ कराव्युं तेना उपर प्रजुने बीराजवा माटे पूर्वाजिमुखे सुवर्णनुं सिंहासन मूक्युं तेना उपर त्रण रत्न सरखा त्रण उत्र गोठव्यां, के जेनी समीपे उनेला यो प्रजुने चामरो नाखे. समवसरणना एक बारणे धर्म चक्र ने बीजे बारणे प्रजुने विसामो क रवा माटे देवछंद स्थापन क.
एव ते समवसरणनी उत्तम रचना कस्या पटी कोटी देवतायी वीटलायेला जगवान् कमल उपर पग मूकता मूकता पूर्वद्वारमाथी समवसरणमां श्रव्या ने चैत्यवृक्षने तथा तीर्थने नमस्कार करीने जेम मेरु पर्वतना शिखर उपर मेघ बेसे तेम रत्नजमित सोनाना सिंहासन उपर बैठा.
पठी ते सिंहासननी बीजी त्रण बाजुए व्यतरोए जगवाननां प्रतिबिंब स्थापन करयां प्रजुना मस्तकनी पाउल रहेलुं नामंडल जाणे प्रजुने सेवामाटे तेजनां पुलो श्रावेला होयनी ? एम शोजवा लाग्युं श्राकाशमां देवतानां पुंडुनि वाग्ये सते प्रजुना विजयने जाणे जादेर करती होयनी शुं ? एम ध्वजा पण उंचे शोजवा लागी. ढींचण परिमाण पुष्पनी वृष्टि पण जाणे त्रास पामता कामदेवना हाथमांथी तेनां बाणो पडी गयां होयनी ? एम अत्यंत शोजती हती.
सर्व सजा पोतपोताने स्थानके बेठा पढी इंडे पोते हाथ जोगीने मल्लिनाथ प्रजुनी स्तुति करी. ते या प्रमाणे. शरण रहित माणसोना समूहने शरण आपनारा, चारित्रना मंदिर, समजावने धारण करनारा, निर्मल कमलना पांदडाना सरखा मनोहर हाथ पगवाला, जन्म मरणरूप रणसंग्रामना जयने नाश करनारा हे प्रजो ! तमे जयवंता वर्तो. संसारने जय अपनारा, शेंकडो नेत्रवाला, निरंतर चंद्र सरखा मुख