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रूपो (नरसुशा एका ( सोलनशने (परिणा
शीलोपदेशमाला. शब्दार्थ-(सीला के० ) शीलथी अर्थात् शील पालवाथी ( इह जवेवि के ) था जवने विषे पण (लही के०) लक्ष्मी, (जसं के०) जश, (पयावो के० ) प्रताप, (माहप्यं के०) माहात्म्य, (श्ररोगया के०) थारोग्यता, अर्थात् श्रारोग्यपणुं (गुणसमिझी के ) गुणोनी समृद्धि अने (सयलसमीहियसिसी के०) सर्वे रूडा श्वेला कार्यनी सिधि (नवे के०) थाय . तेमज (परलोएवि के० ) परलोकने विषे पण (हु के०) निश्चे (तिहुश्रणपण मियचरणा के०) त्रण जुवनना जनोए जेमना चरणकमलने नमस्कार कस्यो बे एवा, अने (अरिणा के) कर्मरूप शण (देवा) थी रहित थएला एवा ( सीलनरा के) शीलवतने धारण करनारा पुरुषो ( नरसुरसमिकि के) मनुष्य अने देवताउनी समृद्धिने (उवचुंजिऊण के ) जोगवीने ( सिधिसुहं के०) मोक्षसुखने (पावंति के ) पामे .॥३॥४॥
विशेषार्थ-निष्कपटपणे शील पालवाथी श्रा नवने विषे 'लक्ष्मी' एटले चक्रवर्ति, वासुदेव, बलदेव अने मंमलिक राजानी पछी, 'यश' एटले सर्व दिशाउँमा धन्यवाद, 'प्रताप' एटले अखंमित ऐश्वर्यपणुं, 'माहात्म्य' एटले सर्प विगेरेमा पुष्पनी मालानुं देखावं, 'अरोग्यता' एटले अतिसार, जगंदर अने क्षय विगेरे रोगथी निराबाधपणुं, 'गुणसमृद्धि' एटले महाव्रत श्रने अणुव्रतोनी पुष्टि अने सर्वे रूडा श्छेला • कार्यनी सिद्धि थाय , तेमज परलोकने विषे पण त्रण जुवनना प्राणियोए नमस्कार करेला भने पूर्वजन्मना शुनाशुज कर्मरूप ज्ञण (देवा). थी रहित थएला एवा ते शीलव्रतने धारण करनारा पुरुषो मनुष्य . अने देवताउँनी समृद्धिने जोगवीने मोदना सुखने पामे . ॥३॥४॥ शील पालवाथी थानव श्रने परनवमां सुखनी प्राप्ति थाय ,
. ते उपर गुणसुंदरी अने पुण्यपालनी कथा. बे सूर्य श्रने बे चंअरूप चार चक्रने धारण करवाथी सर्वे छीपोमा चक्रवर्ती पदने पामेला आ जंपूछीपमां लक्ष्मीथी मनोहर एवा जरतदेवनी दक्षिण दिशाए नदिलपुरनामे मनोहर नगर जे. जे नगरनी आकाशपर्यंत उंची गएली हवेली उपर सूर्य, सुवर्णना कुंजसमान शोजतो हतो अने सोनाना दंडनी धजाउँ उपर बांधेली शेकडो घूघरी श्राका