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अपवादः-केटलीक पार आदि म् नो व थई जाय छ: दा. त. वम्मह-मन्मथ (५. १४.) वम्म-मर्मन् (५. १४; १. १९.) (ड) [१] य-जू । शब्दना आदि य् नो ज थाय ले. दा. त. जइ=
यदि (२. ३७.) जसु-यस्य (७. ७९.) जूह-यूथ इ. [२] य-ज्ज कर्मणि प्रयोगनो य-ज्ज (पूर्वे जो दीर्घ स्वर होय __ तो इस्व करी) करवामां आवे छे: दा. त. किज्जइ-क्रीयते;
(५.३५.) दिज्जइदीयते [३] यव , अ. य् अने व श्रुतिने परिणामे य नी केटलीक वार
अ के व जेवी ज प्रक्रिया थाय छः दा. त. आयइं (३.७.) आविज्जइ (३. १३२.) मऊर-मयर (६. ३२.) हियउ
-हृदय (२. ५६.) [४] य=इ संप्रसारण प्रक्रियाने लीधे तो आ विकार थाय छे ___ एटलं ज नहि, परंतु उच्चारणनी समानताने लीघे लहियाओ . य ने स्थाने इ मूकतां वचकाता नथी. दा. त. पइंपिउ
प्रजल्पितं (२. १९७.) केटलीक वार लहियाभो आवा इने
स्याने र पण मूके छे देवए (२. ७०) आणए (५. २६५) (ढ) र-लू । चलण-चरण (६. ५.) सालण-स्मरण (६. ३२.)
चालीस-चत्वारिंशत् (५. २५०.) सामिसाल-स्वामिसार . (६. १३९.) (ण) ल्=णू । णिडाल ललाट (१.४८)
ल्-र । किर-किल (६. २०.) (त) व-। अने व-म । [$ ३१. (ठ)] ना जणावेली प्रक्रियानी
आ प्रतिगामी प्रक्रिया छे. जे हाथप्रत परथी सदर प्रेथमा उद्धरण लेवामां आव्यां छे, तेमां व लखवानी प्रथा नथी. परंतु आ प्रकारखें उच्चारण क्=म् थवानी वच्चे संभवित छे. दा. त.पिहिमि -पृथिवी (१. ५३.), एम (२. १४.) <एव (२. ४२.)= एवम् ; परिमिय-परिवृत ( २. ६५.); जाम (६. ५.) <जाव (२. १८१.)<यावत् ; ताम (६. ६.)<ताव (२. १८२.) <तावत् .