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________________ (घ) इ=एँ । लेखनना प्रकार उप ज दा. त. करेवि के करिवि, जयहरे सप्तमी एकवचन, के जयहरि-जगद्गृह ३० ६९. ई-अ, आ, इ, ऊ, ए, एँ (क) ई-अ । हरडइ-हरीतकी (सि हे.८.४.९९) (ख) ई-आ। कम्हार काश्मीर (सि.हे.८.४.१००) (ग) ई-न । [जुओ ६४.] (घ) ई-क। विहीन-वहूण (१. १३१) .....() ई-ए । एरिस, एरिसिअ ईदृश (४.२६८) (छ) ई-एँ । खेडुअ-क्रीडा(३.१९४.) ६ १०. उ-अ, इ, ओ, उ (क) उ-अ । जो शब्दना प्रथम अक्षर अने बोजा अक्षरमां उ स्वर होय तो सामन्यतः प्रथम उ नो अ २३ जाय छे. दा. त. गरुअ-गुरुक (२.१३१), मउड-मुकुट (६.१०३)मउलइ-मुकुलयति (६.४०) सोमाल (सउमार*< सं. सुकुमार (६.९५); (ब) उ-इ। पुरिस-पुरुष (५.९.) (ग) उ=ओं । उ ने अनुवतीं जो संयुक्त व्यंजन होय तो उनो ओं थाय छः दा. त. मोग्गर-मुद्र, पोत्थय-पुस्तक, कोन्त-कुन्त (५.७०.) ६ ११. ऊ-ए, ओ, ओ (क) ऊए । णेउर-नू पुर (१.१४.) ... (ख) ऊओं । मोल्ल-मूल्य (ग) ऊ-ओ। थोर-स्थूर* (सं. स्थूल) (३.१.६) तंबोलताम्बूल (१.५९.) ६ १२. -अ, इ, उ, ए, रि, ऋ (क) अ । कसण-कृष्ण(३.२४), कड्ढ-कृष्ट (१.१३४); वड्ढ= वृद्ध(१.१३५), कय-कृत (५.३४) अच्छइ-ऋच्छति ( २.९३.) ... (ख) ऋद । किय-कृत (१.१.) दिहि-दृष्टा (१.७२.) हिअ दय (१.१०) सिंग-शृंग (४.६०)
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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