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________________ १. प्रस्तुत गीतोनी समीक्षाः आ उद्धरणमा कालिदासना प्रख्यात नाटक विक्रमोर्वशीयना चोथा अंकमाथी अपभ्रंश गीतो लेवामां आब्यां छे. भा अपभ्रंश गीतो कालिदासनां छे एम तो कोइ कही शके ज नहि. एने माटे अनेक कारणो छे. (१) आ गीतो उत्तरनी हाथप्रतोमां मालम पडे छ; अने दक्षिणनी हाथप्रतोमा बीलकुल मालम पडतां नथी. (२) आ गीतो अने मूळनी संस्कृत उक्तिओ कच्चे मेळ नथी. (३) केटलांक बीजां कारणसर-दा. त. बंगाळाना अखात तरफना पूर्वदि. शाना पवननो उल्लेख (प्रस्तुत उद्धरण पं. ३९ जुओ ) तब्वेन्तावत् (प्रस्तुत उद्धरण पं. ६ S. K. Chatterji. O. D. B. L_Intro $61.) जेवां बंगाळीरूप. भा प्रयोगो बतावे छे के बंगाळ बाजुए आनो उमेरो थएलो होवो जोईए. एटले दक्षिणनी हाथप्रतोमा भानो उल्लेख नथी. (४) बे टीकाकारोमांथी काशीमां रही टीका करनार रंगनाथ आ अपभ्रंश गीतो पर टीका करे छे; ज्यारे काटयवेमने तो तेनो ख्याल सरखो य नथी. दि. बा. केशवलाल हर्षदराय ध्रुवे आ क्षेपक अपभ्रंश भाग विषे विस्तारथी विवेचन, प्रस्तावना पा. ४०-४२ मां कर्यु छे. ते विवेचन आ विषय परत्वे विशेष द्योतक होवाथी, तेनो निष्कर्ष अमे आपवा. यत्न करीए छीए. काळिदासनां कोइ पण नाटकोमा नहि अने तेना विक्रमोर्वशीयना चोथा अंकमा ज अपभ्रंशगीत प्रक्षिप्त थवानुं कारण ए छे जे ते अंकनो मोटो भाग संस्कृत बोलनार पात्रनो अने लोकोत्तर कल्पनामय वृत्तान्तवाळो होई अपभ्रंश समजनारा लोकोने केवळ दुर्गम नीवडे एवो हतो. आथी भारत नाट्यशास्त्रना बत्रीसमा अध्यायनी ध्रुवानी युक्ति वापरी अन्योक्तिद्वारा राजाना संचारथी प्रेक्षकने वाकेफ राखवार्नु कोइने सूझ्यु. ध्रुवाओ उमेराई अने तेनी पाछळ अपभ्रंश पद्यात्मक कृतिओ पण रचाई. आम रसिक प्रेक्षकनी जिज्ञासा तृप्त करवा क्षेपक अपभ्रंशभाग अस्तित्वमा आयो. अपभ्रंश कविता कालिदासनी कृतिने पडछे झांखी लागे छे. एनुं सौन्दर्य रसमां नहि पण संगीतमा समायुं छे. ____आ क्षेपक अपभ्रंशभाग हेमचन्द्रना अरसामां के जरा पहेलां अने प्राकृत पिङ्गलनी पूर्व उमेरायो हशे, एम भाषा परथी लागे छे. आम आने लगभग ११ के १२मा सैकानुं अपभ्रंश कहेवाय. ___ आ अपभ्रंश भाग छन्द अने भाषानी दृष्टिए घणो भ्रष्ट छे. प्रस्तुत उ. दरणमा विक्रमोर्वशीयनां बर्धा अपभ्रंश गीत लेवामां नथी भाव्यां. आ उद्ध
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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