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१५-२७. दुर्जनने विषनी साथे सरखावे छे.
२६. महुरउ-झेर विषं तु मधुरं प्रोक्तं ॥ (बळी जुओ आप्टे-संस्कृतअंग्रेजी कोष.) विष तो मुखे ( स्वादमा) मधुरं होय अने मन्त्रोवडे तो तेर्नु उत्तम रसायण बनावाय. खल तो पहेला अनुभवी ज कडवो होय छे, अने घडेली मन्त्रणाओने पण तोडी नाखे छे.
२८-२१ दुर्जनने (=खलने) खोळनी साथे सरखाव्यो छे. बन्ने य त्यकस्नेह ( खोळने पक्षे-तैल विनानो; दुर्जनपक्षे-प्रेमविनानो ) अने पशुभक्त (खोळने पक्षे-पशुना भोजनरूप; दुर्जनपक्षे-पशु- भोजन करे छे ते, एटले मांसा. हारी); वळी खोळ तो ज्यारे पीलाय त्यारे ज स्नेह (तैल) त्यजी दे छे अने विचारो अजाण स्थितिमा पशुथी खवाय छे; ज्यारे दुर्जन तो पहेलेथी ज स्नेह विनानो होय छे भने जाणे छे छतां य पशुओने (=पशुओना मांसने) खाय छे.
सामान्यतः जैनप्रन्थोमां 'मांसाहारी' कोइने कहेवो ए. अपशब्द छे. दा. त. सरखावो. भ. क. १. क. ३. पं. ९.-१०. दुव्वयणवियड्दु एक्कु वि दुम्मइ सुयणसय । जो भक्खह मंसु तासु कहिं मि कि होइ दय ॥
२१-२८ दुर्जनने विष्टा साथे सरखावे छे. दुर्जन अने विष्ट बन्नेयने विशिष्ट (=दुर्जनपक्षे-उमदा, विष्टापक्षे-पवित्र) माणस त्यजे छ; अने बन्नेयनी आगळ पाछळ अस्फुट शब्दथी क्षुद्र(दुर्जनपक्षे-छूपी रीते अस्पष्ट उक्तिथी मंत्रणा करता हलका माणसो, विष्टापक्षे-अस्पष्ट बमणाट करती माखीओ)नी मंडली गगणे छे. तो य विष्टा दुर्जन करता सारी; कारण के ए तो कोइ अन्य वस्तुनो फेरफार करे छे ज्यारे दुर्जन तो पोते न भातभातना विकारोथी भरपूर छे. एटले के विद्या बीजी वस्तुना विकारथी उत्पन्न थएली छे; ज्यारे दुर्जनं तो पोते ज विकार- स्थान छे.. . ३६. महर्नु भण्णंतस्स वर्तमानकृदन्त विशेषण छे. बन्ने य शब्दो षष्ठी विभक्तिमा छे. परन्तु छायामां संस्कृतनी दृष्टिए ते बन्नेने सप्तमीमां मूक्या छे.
.' ३८-३९. दुहो छे. प्रथम पंक्तिमां ज्जाअहो भने ज्जि छन्दखातर बेवडाव्या छे. बीजी पंकिमां 'जेण-जेथी करीने 'भा दुहाने पाछली गाथा साथे जोडे छे. तेथी करीने तेनुं समान्तर दर्शक सर्वनाम आ दुहामां नथी. मग्गउ पाछळ; जुओ दे. ना. ६. १११. मग्गो पच्छा । मराठी-मागे. आखा दुहानो अर्थः