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११८. (प.) जहिं तमालतमअविलक्खियरह-ज्यां तमालना अंधकारथी रथ पण जणातो नथी ए रस्ता पर औषधिना तेजथी मार्ग देखाडाय छे.
११९. संबरहिने बदले सबरहि वांचो. १२०. छण्णउ ने बदले संछण्णउ वांचो. मात्रामेळ तो ज मळशे. १२२. (प०) सग्गह.
१२३. (प०) झसमालि ए, मूळपाठ डसणालि करता उत्तम अने स्वीकार्य छे. आ पंक्तिनो अर्थ:-" जेनाथी मकरादि बीतां हतां, ते मत्त जलहस्तीनी सूंढ पाणी छोडती कोइ नवीन नालिका समो शोभती हती." अपभ्रंशमां समास बांधवामा अने तेनी श्लिष्टता साचववानी जे बेदरकारी राखवामां आवे छे तेनुं आ पंक्ति दृष्टांत छे. . १२६. खुडवियने बदले (प०) खुइवियं वांचे छे; परन्तु (५०) नी वाचना छंदोभंगने कारणे अस्वीकार्य छे. 'लक्ष्मीना नू पुरने ज्यां कलहंसे पार्छ पाडयुं हतं.' एम भापणी वाचना प्रमाणे अर्थ थशे. (प.) ना नेऊर पाठने बदले नेउर वांचीए तो ते बेसे. तेनो अर्थ “मक्ष्मीना नू पुरना रवथी ज्या कलहंसो झडावतां हता."
१५४. (५०) अभिह सरखावो. दे. ना. १. ७८. अर्थमां फेरफार थतो नथी.
१६३. (५०) तरुकुसुमोदिसोहपसाहिरि. भा पाठमी भर्थ स्पष्ट थाय छे.
१६५. (५०) भणंति। १७२. (प.) कुमार।
१८३. अवरु पउमरहु सुउ लहुआर उनो संबंध पं. १८२नी माथे छे; त्यार पछी नई वाक्य शरु थाय छे.
१८४. (प.) मृगपरिपुण्णहु
१८८. बुद्धिउ ने वदले बुद्धिए वांचो. . १९४. पहेला अकम्पन नामे मुनि उज्जयिनी गएला. त्यांनी भजैन राजा पोताना बलि, बृहस्पति, नमुचि अने प्रल्हाद नामना मंत्रीओने लई सेमनी माथे विवाद करवा गएलो. परन्तु तेना प्रधानो पादा हार्या. रात्रे