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॥ तृतीयमुद्धरणम् ॥ १. कवि अने तेनुं जीवनः
आ उद्धरण चतुर्मुख स्वयंभूना हरिवंशपुराणमांथी लेवामां आव्यु छे. आ कवि अने तेना जीवन विषे प्रथम उद्धरणमा ऊहापोह करवामां आवेलो छे, आ प्रन्थमा ११२ संघि छे ते प्रन्थना समाप्तिवचन परथी मालम पडे छे:
इय ऽरिडणेमिचरिए धवलइयासियलयंभुउव्वरिए तिहुवणसगंभुरइए समाणियं कन्ह कित्तिहरिवंसं ॥ गुरुपव्वनासभयं सुयणाणुक्कम जहा जाय सयमिक्क दुइह-अहियं संधोत्थ परिसमत्ताउ ॥ संधि ११२॥
भा प्रन्थ १४००० श्लोकप्रमाण छे. पउमचरियनी माफक चतुर्मुख स्वयंभूए आ प्रन्य अधूरो राखेलो; अने तेना पुत्र त्रिभुवन स्वयंभूए ते पूरो कये आ हकीकत सदर प्रन्थमां ठेरठेर वेरायलो प्रशस्तिगाथाओ परथी मालम पडे छे. त्रिभुवन स्वयंभूना नामनी प्रशस्तिगाथा संधि १०० ना अंतथी मालम पड़े छे: इय ऽरिडणेमिचरिए धवलइयासियसयंभुएवकर उवरिए तिहुयणसयंभुमहाकइसमाणिय समवसरणं णाम सउमसग्गो । एटले संधि १०० अने तेना पछीना संधि त्रिभुवन स्वयंभूए रच्या होय एम अधिक संभवित छे. परन्तु संधि ९२ ना अंतमा केटलीक गाथाओ छे जे बतावे छे के चतुर्मुखस्वयंभूए संधि ९२ रची प्रन्य अधूरो मूक्यो होवो जोईए:
तेरह जाइवकंडे कुरुकंडेकूणवीससंधीओ तह सहि जुज्झियकंडे एवं बाणउदि संधीओ ॥ १ ॥ सोमसुयस्स य वारे तइयादियहम्मि फग्गुणे रिक्खे सिउ णामेण य जोए समाणियं जुज्झकंडं व ॥ २ ॥ छव्वरिसाई ति मासा एयारस वासरा सयंभुस्स बाणवइसंधिकरणे वोलिणो इत्तिओ कालो ॥३॥ दियहाहिवस्स वारे दसमीदियहम्मि मूलणक्खत्ते एयारसम्मि चंदे उत्तरकंडं समाढत्तं ॥ ४ ॥ घरं तेजस्विनो मृत्युन मानपरिखण्डनं मृत्युस्तत्क्षणकं दुःखं मानभंगो दिने दिने ॥ ५ ॥