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अष्टमपरिछेद.
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सक्षेत्रपालाः सर्वदेवाः सर्वदेव्यः पुनरागमनाय स्वा हा ॥ " इति पुष्पादि निर्दिक्पाल ग्रह विसर्जनम् ॥ श्राज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मंत्रहीनं च यत्कृतम् ॥ त्सर्वं कृपया देवाः, कमंतु परमेश्वराः ॥ १॥ आव्हानं न जानामि, न जानामि विसर्जनम् ॥ पूजां चैव न जानामि त्वमेव शरणं मम ॥ २ ॥ कीर्त्तिः श्रियो राज्यपदं सुरत्वं न प्रार्थये किंचन देव देव ॥ मत्प्रार्थनीयं जगवत्प्रदेयं स्वदासतां मां नय सर्वदापि ॥ ३ ॥
इति सर्वकरणीयांते जिनप्रतिमादेवादि विसर्जन विधि अर्हत् अर्चन विधिमें जी ऐसें ही विसर्जन जानना ॥ इति लघुस्नात्र विधिः ॥
पीछे (गृह चैत्यपूजानंतर ) बडे देवमंदिरमें जाक र, शकस्तवादिस्तोत्रोंकरके जिनराजकी स्तवना कर के, और जिनराजका पूजन करके, प्रत्याख्यान चिंत वन करे. | पीछे चैत्यको प्रदक्षिणा करके, पौषधशा ला ( उपाय ) में जाकर, देवकीतरें बड़े श्रानंदसें साधुको वंदन करे. सुंदरबुद्धिवाला होकर, पूजा सत्कार करे. | पीछे एकाग्रचित्त होकर साधुके मुख सें धर्मदेशना श्रवण करे. पीछे मनमें धारा हुआ प्रत्याख्यान करे. पीछे गुरुको नमस्कार करके कर्मा दानको तरें त्यागके, धन उपार्जन करे. यथा योग्य स्थानमें व्यापार समाचरे. कुत्सित बुरा कर्म