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जैनधर्मसिंधु. दकमिश्रित सर्व जलाशयोंके पानी स्थापन करे. चंदन केसर कर्पूरादि सुगंधी व्य करके वासित करे. चंदनादि और पुष्पमालासें, कलशोंको पूजे. जल पुष्पादिश्रनिमंत्रणकेमंत्र पूर्वे कहे हैं सो जानने। पीजे एक श्रावक, अथवा बहुत श्रावक, पूर्वोक्त वेष शौचवाले गंधसे हस्तको लेपन करके, मालालू षित कंउवाले तिन कलशोंको हाथऊपरि रके पीछे खखबुधिअनुसारसे जिनजन्मानिषेकचिन्हित स्तोत्रों को जिनस्तुतिगर्जित षट्पदादि (बप्पयादि) को पढे । पीने शार्दूलवृत्त पढे। जाते जन्मनि सर्व विष्टपपतेरिंखादयो निर्जरा। नीत्वा तं करसंपुटेन बहुनिः साई विशिष्टोत्सवैः ॥ शंगे मेरुमहीधरस्य मिलिते सानंददेवीगणे । स्नात्रारंजमुपानयंति बहुधा कुंजांबुगंधादिकम् ॥१॥ योजनमुखान् रजतनिष्कमयान् मिश्रधातुमृनचितान् दधते कलशान् संख्या तेषां युगषट्रखदंतिमिता॥२॥ वापीकूपइदांबुधितडागपत्वलनदनिकरादिन्यः ॥ थानीतैर्विमलजलैः स्नानाधिकं पूरयति च ते ॥३॥ कस्तूरीधनसारकुंकुममुराश्रीखंगकंकोलकै । हीबेरादिसुगंधवस्तुनिरखकुर्वति तत्संवरम् ॥ देवेंा वरपारिजातबकुलश्रीपुष्पजातीजपा। मालानिः कलशाननानि दधते संप्राप्तहारस्रजः॥४॥ ईशानाधिपतेर्निजांककुहरे संस्थापितं खामिनं ।