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४.-.-.वृत्तिकी प्रतिष्टा विजलीकी माफक प्रकाशक होती रही जिनका प्रत्यक्ष दृष्टांत यहहे की सने १७०७ ता. २ जानेवारीके रोज बंगालाके सरकारने अत्यंत प्रसन्न चित्त होके रायबहारका मानवंता खिताब समर्पित कीया और मुर्शीदाबाद लालबागकी कचेरीमें ओनररी मेजीष्ट्रेटका मानवंता होदा इनायत किया
और अपनी वकतावर मर्दुम श्रीमती महाराणीकी मायमंम जुबीलीक यादगारीके प्रसंगमे ता. २० मी जुन स. १एए के रोज बादशाही मानका “ खरीता” दीया गया था. तैसेंहिं ता. १ ली जानेवारी स. १९०३ के रोज अपने नामदार शेहेनशाह सातवे एमवरने हिंऽस्थानकी बादशाही स्वीकारी जिस्की यादगारीमें देहली दरबारके नव्य समारंजके समय रायबहापुरकी उदारता और अपने लोकोपयोगी सार्वजनीक हितकार्यकी पीगनमे उसरी वार " खरीत्ता” दिया गया था. यह राजमान होइकोनी अबी तोरसें दीपातेहें.
इस दरम्यान सने १७७७ में दोनो नाश्योने सलाह संपसे अपना अपना व्यापार जिन्नभिन्न चलाना सिरु किया हे परं जमीन जागीरोंका हिस्सा ज्योंका त्यों रक्खा हे.
यद्यपि व्यापारादि कार्य जिन्नथे तथापि पारस्परीय सलाह संपसें अजिन्नता समानहि प्रवर्तनथा.
सने १७एच मे रायबहाकुर बाबु विसनचंदजी अपनी पीने १४ वर्षकी उमरके राजा विजयसिंघजी नामक कुमारको गेमके यह फानी मुनियाको गेम गएथे.
श्रीयुत बाबु बिसनचंदजीके गएबाद अपने बोटे नतीजे और उनकी बझी दोलत समालनेका और जोखमदारीका कार्य उक्त महोदयके सिरपर आय पमाथा.
कायदेकी रीतसेंजी मुशीदाबाद जिले जङकी कोर्टसेजीउक्त