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७६४ जैनधर्मसिंधु. तस्स मिलामि उक्कम । । तस्सउत्तरीकरणेणं, पायचित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसबीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निनायणमाए, गमि काउस्सग्गं।। यह दूसरी वाचना, श्राप चाम्लके अंतमें देनी. ॥२॥ इसके पीछे ॥ ___ “॥ श्रन्नथ्थ उससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, बीएणं, जंजाइएणं उगएणं, वायनिसग्गेणं, नमलि ए, पित्तमुछाए, ॥ १ ॥ सुहुमेहिं अंगसंचाहिं, सुहुमेहिं खेलसंचाहिं, सुहुमेहिं दिहिसंचाहिं।। एषमाश्एहिं, श्रागारेहिं, अजग्गो अविराहियो, हुऊ मे कामस्सग्गो । ३ । जाव अरिहंताणं, जगवं ताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि ।। ताव कायं, गणे णं, मोणेणं, जाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि । ५।" यह चूखिकाकी वाचना, अंत दिनमें देनी.॥ इतिऐर्यापथिक्याउपधानम् ॥२॥
अथ शक्रस्तवका उपधान कहते हैं. ॥ तहां नंदिश्रादि सर्व शक्रस्तवके श्रमिलापसे पूर्ववत् । तथा प्रथम दिनमें एकजक्त, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एकनक्त, चौथे दिन उपवास, पांचमे दिन एकनक्त, के दिन उपवास,सातमे दिन एक . जक्तः । तहां तीन संपदायोंकी प्रथम वाचना देते हैं. ॥ यथा ॥