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जैनधर्मसिंधुः नदि देववंदन. कायोत्सर्ग, कमाश्रमण, वंद नक, प्रमुख नमस्कारश्रुतस्कंधके अनिलापसे पूर्व वत जाणना. और अनिमंत्रित वासदेप नी प्रर्व वत् जाणना. । तहां पूर्वसेवामें एकलक्तके अंतरे उपवास पांच, एवं दिन ११, तहां प्रथम नंदिदिन में एकजक्त, वा निविगइ, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एकजक्त, चौथे दिन उपवास, पांचमे दिन एकनक्त, बछे दिन उपवास, सातमे दिन एक जक्त, आठमे दिन उपवास, नवमे दिन एकनक्त, दशमे दिन उपवास, एकादशमे दिन एकनक्त. ऐसें छादशम तप पूर्व सेवामें करना. । तहां पंचपरमेष्ठि पदोंकी वाचना नंदिविना नी देनी. शक्रस्तवका पढना, वासदेपपूर्वक तीन नमस्कारोंका पढना, सर्व वाचनाओंमें जाणना.। तहां श्रेणिबह आठ आचा म्ल करने, ऐसें एकोनविंशति (१ए.) दिन. पीले वीसमे दिन एकनक्त, श्कवीसमे दिन उपवास, बावीसमे दिन एकनक्त, तेवीसमे दिन उपवास, चौवीसमे दिन एकनक्त, पच्चीसमे दिन उपवास.। ऐसें अष्टम तप उत्तर सेवामें. । पीछे चूलिकाकी वाचना एसो पंच यहांसें लेके हव मंगलं ॥
इति नमस्कारस्योपधानं॥पीछे तिसकी वाचना, तिसका विधि यह है. ॥ पहिला सामाचारीका पुस्तक पूजना, पीछे मुखवस्त्रिकासे मुख ढांकके