________________
០
जैनधर्मसिंधु. धीयते स्थापन करिये, तिसको उपधान कहिये. तिस उपधानमें 3 (६) श्रुतस्कंधोंका उपधान होता है, सोही दिखाते हैं. परमेष्ठिमंत्रका १, श्योपथि कीका २, शक्रस्तवका ३, अर्हत् चैत्यस्तवका ४, चतु विंशतिस्तवका ५. श्रुतस्तवका ६.
सिझस्तवकी वाचना उपधानविना होती है.
प्रथम परमेष्ठिमंत्र महाश्रुतस्कंधके पांच अध्य यन है, और एक चूलिका है. दो दो पदके श्राला वे पांच है, सात २ अदरके अर्हत् श्राचार्य उपा ध्याय नमस्कार रूप तीन पद है. सिझनमस्कृति. रूप दूसरा पद पांच अदरोंका है, साधुओंको नम स्काररूप पांचमा पद नव श्रदरोंका है, एवं पांच पद. तिसके पीछे चूलिका, तिसमें दो पदरूप प्रथ म बालापक सोलां (१६) अदरोंका है, तृतीय पदरूप दूसरा आलापक पाठ (G) अदरोंका है,
और चौथे पदरूप तीसरा आलापक नव (ए) अक्षरोंका है. तहां पंचपरमेष्ठिमंत्रमें पांचो पदोंमें तीन उद्देशे है, और चूलिकामें ली उद्देशे तीन है एवं उद्देशे ६. ॥प्रथमके पांचो पदोंमें पैंतीस (३५) अदर है, और चूलिकामें तेतीस (३३) श्रदर है. पांच अध्ययन ऐसें है ॥
नमो अरिहंताणं १ । नमो सिकाणं २ । नमो