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जैनधर्मसिंधु. गान, वादित्रवादन, लोजन तांबूल वस्त्र सामग्री सदैव करनेचहिये। पीछे गुरु ॥ “॥ ॐ नमोई सिकाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः ॥”
ऐसें कहके, प्रथम श्रदतपूर्ण हाथवाला होके वधूवरके आगे ऐसा कहे. ॥
विदितं वां गोत्रं संबंधकरणेनैव ततःप्रका श्यतां जनाग्रतः” __ जाना है तुमारा गोत्र, संबंध करनेसेंही; तिस वास्ते प्रकाश करो, लोकोंके आगे.। तब प्रथम वरके पक्षीय, अपने गोत्र, अपनी प्रवर, झाति और अपने अन्वय-वंशको प्रकाश करे,। पीछे वरकी माताके पदीय, गोत्र, प्रवर, झाति, और वंशको प्रकाश करे.। पीले कन्याके पदीय, अपने गोत्र, प्रवर झाति, वंशको प्रकाश करे.। फिर कन्याकी मा ताके पदीय, गोत्र, प्रवर, झाति, वंशको प्रकाश करे.। पी गुरु.॥ - “॥ अह अमुकगोत्रीयः, श्यत्प्रवरः, अमुक झातिः, अमुकान्वयः, अमुकप्रपौत्रः,अमुकपौत्रः अमु कपुत्रः, अमुकगोत्रीयः, श्यत्प्रवर अमुकज्ञातीयः, श्र मुकान्वयः, अमुकप्रदौहित्रः, अमुकदौहित्रः, अमुकः सर्ववरगुणान्वितो, वरयिता, अमुकगोत्रीया, श्यत्प्रव रा,अमुकशातीया,अमुकान्वया, अमुकप्रपौत्री,अमुक पौत्री, अमुकपुत्री, अमुकगोत्रीया, श्यत्प्रवरा, अमुक