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अष्टमपरिच्छेद.
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जसूत्र अलंकृत, मंथानको लाके, तिसरों, तीन वार वरके ललाटको स्पर्श करे । पीछे वर, वाहन सें नीचे उतरके, वामे पगसे तिस अग्निलवण संयुतसंपुटको खंगित करे ( तोडे. ) पीछे वरकी सासु, वा कन्याकी मामी, वा कन्याका मामा, कौसुं जवस्त्रको वरके कंठमें मालके, खेचता हुआ वरको मातृघरमें ले जावे. तहां विभूषाकरके, कौतुकमंग लकरके, प्रथम श्रासन ऊपर बैठी हुई कन्याके वामे पासे, मातृदेवीके सन्मुख, वरको बितलावे. । पीछे गृहस्थगुरु लग्नवेला में शुभांशके हुए, पीसी हुई समी (खेजी) की बाल, और पीपलिकी बाल, चंदनद्रव्य मिश्रितकरके, तिससें लीपे हुए, वधूवरके दोनों दक्षिण हाथ जोडे । उपर कौसुंनसूत्रसें बांधे ॥ हस्तबंधनमंत्रः ॥ “ ॥ ॐ आत्मासि, जीवोसि, समकालो सि, समचित्तोसि, समकर्मासि, समाश्रयोसि, समदेहो सि, सम कि यो सि, समस्नेहो सि, समचेष्टितो सि, समाजिला षोसि, समेच्छोसि, समप्रमोदोसि समविषादो सि, समावस्थोसि, समनिमित्तोसि, समवचाासि, सम कुत्तष्णोसि, समगमोसि, समागमोसि, समविहा रोसि, समविषयोसि, समशब्दोसि समरूपो सि, समगंधोसि, समस्पर्शोसि, समेंद्रियोसि समाश्रवो सि, समबंधोसि, समसंवरोसि, सम निर्जरोसि, सम
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