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अष्टमपरिवेद. ६३ पितन्याय्यपथाय प्रसेनजिदनिधानाय ॥” शेषं पूर्ववत् ॥५॥ '" ॥ ॐ नम षष्ठकुलकराय, स्वर्णवर्णाय, श्यामव
श्रीकांताप्रियतमासहिताय,धिक्कारमात्रख्यापितन्या य्यपथाय मरुदेवानिधानाय, ॥” शेषं पूर्ववत् ॥६॥ __“॥ ॐ नमः सप्तमकुलकराय, कांचनवाय, श्या मवर्णमरुदेवा प्रियतमासहिताय, धिक्कारमात्रख्यापित न्याय्यपथाय, नाजीअनिधानाय ॥” शेषं पूर्ववत् ॥ ॥७॥ इतिकुलकरस्थापन पूजन विधिः॥ _ यह कुलकरस्थापना और परसमयमें गणेशमदन स्थापना, विवाहके पीछेनी सात अहोरात्रपर्यंत रखनी चाहिये । पीजे वरके घरमें शांतिक, पौष्टिक करे. और कन्याके घरमें मातृपूजा पूर्ववत् । पीले विवाहकालसें पूर्व सात, नव, ग्यारह, वा तेरह, दिनोंमें वधूवरको अपने ५ घरमें, मंगलगीतवाजंत्र पूर्वक, तैलानिषेक और स्नान, नित्य विवाहपर्यंत करानाः। प्रथमतैलानिषेकदिनमें, वरके घरसे कन्या के घरमें, तैल, शिरःप्रसाधनगंधजव्य, प्रादादि खाद्य, शुष्कफल, नेजने. । नगरकी औरतें वरके घरमें और कन्याके घरमें, तैल, धान्य, ढोकन करें। वधूवरके घरकी वृद्ध नारीयों तिन तैल धान्यढौकने वाली नारीयोंको, पूडे श्रादि पक्कान्न देवें । तहां धारणादि देशाचार, कुलाचारोंसें करना । तैलानि