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जैनधर्मसिंधु.
कारालंकृतां कन्यां ददामि प्रतिगृह्णाष्व जऊं जवतु ते अँहँ ँ ॥
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इस मंत्र करके बांचलदंपती - स्त्रीजर्ता, अपने घरमें जावे. ॥ इति धार्यो ब्राह्वय विवाहः ॥ १ ॥ प्राजापत्य विवाह जगत् में प्रसिद्ध है, इसवास्ते विस्तारसें कहेगें. ॥
या विवाह में वनमें रहनेवाले मुनि, कृषि, गृहस्थ अपनी पुत्री को, अन्यशषिके पुत्रकों, गौ बैल के साथ देते हैं. तहां अन्य कोइ उत्सवादि नही होते हैं, इस विवाहका मंत्र जैनवेदों में नही है जैनी मंत्र जैन वेदकरके वर्णादि श्राश्रित हुए जैनोंके चार कथन करनेवाले हे और ऐसें विवा ह कृत्य होनेसें जैनोकों कथन करनेकी जरुर नही हे. दैवत | विवाह में जी ऐसेंही जाणना. । इन दोनों विवाहोके मंत्र पर समयसें जाणने ॥ इति धर्म्य श्रार्षविवाहः ॥ ३ ॥
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दैवत विवाहमें तो, पिता, अपने पुरोहितकों श्ष्ट पूर्त्त कर्मके अंत में अपनी कन्याको दक्षिणाकी तरें देवे. यह कार्य जी जैनोंकों सम्मत नही होनेसें इस्के मंत्री कथन करतें नहीं हें ॥ इति दैवत धार्म्य विवादः ॥ ४ ॥ ये चार धार्म्यविवाद हैं. ॥
पिता दिकों की सम्मती विना, अन्योन्यप्रीतिकरके जो विवाह होता है, सो गांधर्व विवाह ॥ १ ॥
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