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अष्टमपरिबेद. ६७ घ्युतव्रतानां ब्रात्यानां तथा नैवेद्यनोजिनाम् ॥ कुकर्मणामवेदानामजपानां च शस्त्रिणाम् ॥१॥ ग्राम्याणां कुलहीनानां विप्राणां नीचकर्मणाम् ॥ प्रेतान्न नोजिनां चैव मागधानां च बंदिनाम् ॥२॥ घांटिकानां सेवकानां गंधतांबूलजीविनाम् ॥ नटानां विप्रवेषाणां पशुरामान्वया यिनाम् ॥ ३॥ अन्यजात्युनवानां च बंदिवेषोपजीविनाम् ॥ इत्यादिविप्ररूपाणां बटकरण मिष्यते ॥४॥
अर्थः-व्रतसे ज्रष्ट हुए, संस्कारहीन, नैवेद्यका जोजन करनेवाले,कुकर्मके करनेवाले,जैन वेदको नही जाणनेवाले, वेद मंत्रोंका जप न करनेवाले, शस्त्रको धारण करनेवाले, कुग्रामके वसनेवाले,कुलहीन, नीच कर्मके करनेवाले, प्रेतके अन्नका लोजन करनेवाले, मागध-स्तुतिपाठ पठनेवाले बंदीराजादिकी स्तुति पढनेवाले, घंटिका बजानेवाले, सेवा करनेवाले, गंधतांबूलकरके आजीविका करनेवाले, विप्रवेष धारण करनेवाले नट, पशुरामके संतानीय, अन्य जातिसे उत्पन्न हुए, बंदिवेषसें आजीविका करनेवा ले, इत्यादि विप्ररूपको बटूकरण इच्छते हैं । तिस का यह विधि है. प्रथम तिसके घरमें गृहस्थगुरु, यथोक्त विधिसें पौष्टिक करे. पीने तिसको शिखा वर्जके मुंडन करावे, पीछे तिसको तीर्थोदक