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अष्टमपरिछेद.
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वान् हुए, हित है । बृहस्पतिवार दोवे, बृहस्पति बलमान् होवे, वा केंद्रगत होवे, तो, द्विजोंको उ पनयन श्रेष्ठ है. और बृहस्पति तथा शुक्र नीच घरमें होवे, शत्रुके घर में होवे, वा पराजित होवे तो श्रवणविधी में स्मृतिकर्म हीन होवे | लग्न में बृहस्पति होवे, त्रिकोणमें शुक्र होवे, और शुक्रांश में चंद्रमा होवे तो जैनवेदवित् होवे; शुक्रसहित सूर्य लग्नमें शनिके अंश में स्थित होवे, तदा सीख। दुइ विद्या मूल जावे ऐसा कृतन्न होंवे । केंद्र में बृहस्पति होवे तो, स्वानुष्ठानमें रक्त होवे, प्रवरमतियुत होवे. शुक्र होवे तो, विद्या सौख्य अर्थ युक्त होवे, बुध होवे तो, अध्यापक होवे, सूर्य होवे तो, राजाका सेवक होवे, मंगल होवे, तो, शूरवीर होवे. चंद्रमा होवे तो, व्यापारी होवे. शनि होवे तो, नीच जातीका सेवक होवे । शनिके अंशमें मूर्खता उदय हो, सूर्यके भाग में क्रूरपणा होवे, मंगलके अंश में पाप बुद्धिहोवे, चंद्रांश में तिजमपणा होवे, बुधांश मे प्रति पटुपणा होवे, गुरु शुक्र के जागमें सुज्ञपणा होवे, सुर्य सहित बृहस्पति होवे तो निर्गुण होवे, अर्थ हीन होवे, मंगल सहित सूर्य होवे, तो क्रूर होवे, बुध सहित होवे तो पटु होवे, शनि सहित होवे तो आलस और निर्गुण होवे, चंद्र सहित शुक्र होवे तो अर्थहीन जालना, पूर्वोक्त निर्दोष नक्षत्रो