________________
अष्टमपरिछेद.
६२५
तिस कुंलवर्गकों बुलवावे. क्योंकि, सूतक सोलां पुरुयुगसें उरे ग्रहण करिये हैं. ॥ यक्तं ॥
नृषोडशकपर्यन्त गणयेत् सूतकं सुधीः ॥ विवाहं नानुजानीयामोत्रे लक्षनृणां युगे ॥ १ ॥ जावार्थ:- सोलां पुरुषपर्यंत (बुद्धीवंत ) पुरुष सूतक गिणे । परंतु एकगोत्र में लक्ष पुरुषयुग व्यतीत हुए जी, विवाह नही करे । तिसवास्ते अपने गोत्रजको बुलवायके तिन सर्वको सांगोपांग स्नान और वस्त्रदालन करनेको कहे. । स्नान करके शुचि वस्त्र पहनके गुरुको साक्षी करके, वे सर्व गोत्रज विविध प्रकारकी पूजासें जिन प्रतिमाका पूजन करे. । तदपीछे बालकके माता पिता पंचगव्य करके अंतस्नान करे । पुत्रसहित नखच्छेदनकरके गांव जोमी दंपती जिनप्रतिमाको नमस्कार करे, सधवा स्त्रीयांके मंगलगीत गाते वाजंत्रोंके वाजते हुए. । और सर्व चैत्योंमें पूजा नैवेद्य ढौकन करे. । साधु योंको यथाशक्ति चतुर्विध आहार वस्त्र पात्र देवे, । और संस्कार करनेवाले गुरुको वस्त्र तांबूल भूषण द्रव्यादिदान देवे. तथा । जन्म, चंद्रसूर्यदर्शन, कीरा शन, षष्ठी, इन संबंधिनी दक्षिणा तिस दिनमें संस्का गुरुकेतis देणी । और सर्व गोत्रज स्वजन मित्र aat यथाशक्ति जोजन तांबूल देनां । तथा गुरु तिस कुलके श्राचारानुसारकर के पंचगव्य, जिनस्ना
७९