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अष्टमपरिछेद. ६१७ वोऽसि । नमस्ते जगवन् प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टिं प्रमोदं कुरु २ सन्निहितो नव श्रहं ॥” ।
ऐसे गुरुके पठन करे हुए, सूर्यको देखके, माता पुत्रसहित, गुरुको नमस्कार करे. गुरु पुत्रसहित मा ताको आशीर्वाद देवे। ___ यथा । श्रार्या ॥ सर्वसुरासुरवंद्यः कारयिता सर्वधर्मकार्याणाम् ॥ नूयात्रिजगच्चकुर्मंगलदस्ते सपुत्रायाः ॥१॥
सूतकमें दक्षिणा नही है.। तदपीछे गुरु स्वस्था नमें आयकर जिन प्रतिमाको और स्थापित सूर्यको विसर्जन करे. माता और पुत्रको सूतकके न यसें तहां जिनप्रतिमाके पास न लावे. तिस दिनमें ही संध्याकालमें गुरु जिनपूजापूर्वक जिनप्रतिमाके आगे स्फटिकरूप्यचंदनमयी चंडमाकी मूर्ति स्थापन करे, तिस चंडमाकी मूर्तिका शांतिकादिक प्रक्रमोक्त विधिकरके पूजन करे. तदपीछे तैसेंही सूर्यदर्शनरीतिसें चंडमाके उदय हुए प्रत्यक्ष चंद्रसन्मुख माता और पुत्रको ले जाके, वेदमंत्र उच्चार करता हुआ, मातापुत्र दोनोंको चंडका दर्शन करावे. ॥ चंजस्य वेदमंत्रो यथा ॥
“॥ ॐ अर्ह । चंसोऽसि । निशाकरोऽसि । सुधा करोऽसि । चंद्रमा असि । ग्रहपतिरसि । नक्षत्रपति रसि । कौमुदीपतिरसि । निशापतिरसि । मदनमि