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सप्तमपरिछेद. ए थोसें सीधे देववंदन करना. तिस्में स्तवनके स्थान अजीसंता कहना.और देव पूरा होनेसें खमाण श्वा० कुञोपजव उमावण काउस्सग्ग करूं? द्धं करेमि काजस्सग्गं अन्नबं कही चार लोगस्सका काउस्सग्ग सागरवर गंनीरा तक करना. स्तुतिके स्थान वृक्ष शांति कहना. पिलें प्रगट लोगस्स कहना.
दूसरे गामसें स्वसमाचारीवाले साधुके काल धर्म का समाचार मिलनेसेंनी उपर प्रमाणे पाठ थोश्से, सीधे देव वांदने तथा अजीसंता वृध्धशांति कहना.सा ध्वीने समाचार आनेसे साध्वीोंने देव वंदन करना. कोसाधु कालधर्म पामे तब श्रावककों करनेका विधि.
प्रथम स्नान करना केश होय तो प्रथम तरा ना. जरा पगकी अंगुलीको बेदकरना. हाथ पगकी श्रांगलीयोंकों बंध करना. शरीरपर चंदन केशर बरासकाविलेपन करना. मृत्यु स्थानके तथा स्नान क रायके बेगनेके स्थानक लोखंडकी खीली गेकनी. नये वस्त्र पहेनाना. दक्षिण तर्फ रजोहरण (चरव ली) मुहपत्ति रखना. मांही तर्फ जोली, उस्मे न ग्न पात्र एक लमु सहित रखना.रोहिणी, विशाखा. पुनर्वसु तिन उत्तरा ए उ नक्षत्र में दो पुतले दर्ज के करके रखना. ज्येष्टा, आओ, स्वाति, शतनिषा, जरणी अश्लेषा ए उ नक्षत्रे पुतलें न करणा. दूसरे १५ नक्षत्रेमें एक पुतला करणा. वो पुतलेके जमणे