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५५६ जैनधर्मसिंधु. ककराइए बीए । जंजाइए ॥ श्रामोसे ॥ ससरका मोसे ॥श्राउसमाजलाए ॥ सोश्रणवत्तिश्राए ॥श्वी विप्परिासियाए । दिहीविप्परियासियाए । मण विप्परिश्रासियाए। पाणनोश्रण विप्परिश्रासियाए। जो मे देवसि अश्वारो कर्म। तस्स मिलामि उक॥ पमिकमामि गोश्रचरिथाए॥ निकायरियाएउग्घा मकवाम नग्धामणाए । साणावबादारा संघट्टणाए॥ मंमिपाहु मिश्राए ॥ बसिपाहुडियाए ॥ उवणापाहु मिश्राए संकिए ॥ सहसागारिए । अणेसणाए पाणे सणाए ॥ पाणजोषणाए ॥ बीअनोत्रणाए ॥ हरि बजोअणाए ॥ पकम्मिश्राए ॥ पुरेकम्मिश्राए ॥ श्रदिहमाए ॥ दगसंसहमाए रयसंसहमाए ॥ पारिसामणियाए ॥ पारिठावणियाए ॥ उहासण निरकाए ॥ जं जग्गमेणं उप्पायणेसणाए ॥ अपरि सुझं पडिगाहिरं ॥ परिजुत्तं वा ॥ जं न परिहविध तस्स मिठामि मुक्कम ॥ पमिकमामि चाउकालं ससा यस्स अकरणयाए । उनकालं नंमोव गरणस्स थप्पमिलेहणाए ॥ पुप्पमिलेहणाए ॥श्र प्पमजणाए ॥ पुप्पमळणाए ॥ अश्कमे ॥ वश्क मे । अश्यारे ॥ अणायारे ॥ जो मे देविसि अझ यारो कर्ड ॥ तस्स मिठामि मुक्कम ॥ पडिकमामि एगविहे असंजमे ॥ १ ॥ पकिमामि दोहिं बंधणे हिं । राग बंधणेणं ॥ दोस बंधणेणं ॥ २ ॥ पडिक्क