________________
शष्ठमपरिवेद.
धनपिता जिण कुलं अवतरिया धन सहगुरु जिणे दिखियाए ॥ विनयवंत विद्या नंमार, जसुगुण कोश न लग्ने पार, विद्यावंत गुरु विनवे ए॥गौतमसामीनो रास जणीजे, चनविह संघ रलि यायत कीजे, शकि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४६॥ कुंकुम चंदन बमो देव रावो ॥ माणक मोतिनां चोक पुरावो ॥ रयण सिंहा सण॥ बेसणुंए॥तिहां बेसीप्रनु देसना देसे ॥ नविक जीवनां काज सरसे ॥ नित्य नित्य मंगल उदयकरो ॥ इति श्री गौतम स्वामीनो रास संपूर्ण ।
॥अथ श्रीमहावीरजिन बंद ॥ ॥ सेवो वीरने चित्तमां नित्य धारो, श्ररिक्रोधने मन्नथी दूर वारो ॥ संतोष वृत्ति धरो चित्तमांहिं, राग केषथी दूर था उबाहिं ॥१॥ पड्यामोहना पासमां जेह प्राणी, शुद्ध तत्वनी वात तेणें न जाण ॥ मनु जन्म पामी वृथा कां गमोडो, जैनमार्ग बंमी तुला कों नमो बगे॥॥अलोजी अमानी निरागी तजो बगे सलोजी समानी सरागी जजो बो॥ हरि हरादि अ न्यथी शुरमोडो, नदी गंगा मूकी गलीमां पमोडो ॥३॥ केश् देव हाथें असि चक्रधारा, केश देव घाले रुंढ मा ला॥केश देवउत्संगेंराखे बेवामा, केश देव साथे रमे वृंद रामा ॥४॥ केश देव जपे ले जपमाला, केश मांसनदी महावीकराला । के योगिणी नोगिणि जोग रागें, के रुजाणी गगनो होम मागे ॥५॥
___--- ६१