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________________ १५ जैनधर्मसिंधु. लालोलधूलीबहुलपरिमलालीढलोलालिमाला॥ ऊंकारारावसारामलदलकमलागारनूमिनिवासे॥ गयासंन्नारसारे वरकमलकरे तारदारानिरा मे॥वाणीसंदोहदेदे नवविरहवरं देहि मे देवि सारम् ॥ ४॥इति ॥२२॥ ॥३॥ अथ पुरकरवरदी॥ ॥पुरकरवरदीवढे ॥ धायसंमे अ जंबुदी वे अ॥नरदे रवय विदेदे ॥धम्माइगरे नमं सामि ॥ १ ॥ तमतिमिरपमलविसण, स्स ॥ सुरगणनरिंदमहिअस्स ॥ सीमाधर स्स वंदे ॥ पप्फोडिअमोहजालस्स ॥२॥ जाई जरामरणसोगपणासणस्स ॥ कल्लाण पुरस्कलविसालसुदावहस्स ॥ को देवदाणवन रिंदगणचिअस्स ॥ धम्मस्स सार मुवलग्न करे पमायं ॥ ३ ॥ सिन्नोपय णमो जिणम ए, नंदी सया संजमे ॥ देवं नाग सुवन्न कि नर गण, स्सनुअनावच्चिए ॥ लोगो जब पक्ष में जगमिणं, तेलुकमच्चासुरं ॥ धम्मो वहां सासवर्ड, विजय, धम्मुत्तरं वढन ॥४॥सुअस्स नगवड केरमि कानस्सग्गं वंदणवत्तिाए ।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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